कंपनी की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक इसकी बड़ी संख्या में अधूरी परियोजनाएं हैं। रिलायंस पावर के पास वर्तमान में 20,000 मेगावाट से अधिक क्षमता की परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। ये परियोजनाएं कई वर्षों से रुकी हुई हैं और इनके पूरा होने का कोई संकेत नहीं है। अधूरी परियोजनाओं के कारण कंपनी को भारी वित्तीय नुकसान हुआ है और इसके शेयर की कीमतों में भारी गिरावट आई है।
रिलायंस पावर का भारी ऋण बोझ भी चिंता का एक प्रमुख कारण है। कंपनी पर 75,000 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण है, जो इसके कुल ऋण का 40% से अधिक है। भारी ऋण कंपनी की वित्तीय स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा है और इसके विकास में बाधा पैदा कर रहा है।
भारी ऋण बोझ और अधूरी परियोजनाओं के अलावा, रिलायंस पावर को खराब वित्तीय प्रदर्शन का भी सामना करना पड़ रहा है। कंपनी लगातार घाटे में चल रही है और इसके शेयर की कीमतों में भारी गिरावट आई है। 2010 में अपने चरम पर, रिलायंस पावर का शेयर 400 रुपये से अधिक पर था। आज, यह 20 रुपये से भी कम पर कारोबार कर रहा है।
रिलायंस पावर की समस्याओं की जड़ में प्रबंधन की कमी और खराब रणनीतिक निर्णय हैं। कंपनी ने अत्यधिक आक्रामक रूप से विस्तार किया है, जिससे इसे भारी ऋण बोझ और अधूरी परियोजनाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, कंपनी ने सौर और पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में निवेश करने में विफल रही है, जिससे यह बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता खो रही है।
रिलायंस पावर का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। भारी ऋण बोझ, अधूरी परियोजनाएं और खराब वित्तीय प्रदर्शन कंपनी के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा हैं। कंपनी को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे, जिसमें बिक्री करना, संपत्ति बेचना और अनुकूल वित्तीय पुनर्गठन शामिल हो सकता है।
यदि रिलायंस पावर अपने वर्तमान संकट से उबरने में विफल रही, तो इसका भारत के ऊर्जा क्षेत्र पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। कंपनी देश की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादक में से एक है और इसका पतन बिजली आपूर्ति में व्यवधान और बिजली की कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकता है।"