हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है और द्वादशी एकादशी के व्रतों में से एक है। यह व्रत प्रत्येक वर्ष के श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत की कथा पद्मपुराण में दी गई है।
पद्मपुराण के अनुसार, प्राचीन काल में वैवस्वत मनु के राज्य में लोभ और अहंकार से भरा एक राजा था जिसका नाम मंडप था। वह अपने भोग-विलास में डूबा रहता था और उसने भगवान विष्णु की उपासना छोड़ दी थी।
भगवान विष्णु राजा मंडप के व्यवहार से प्रसन्न नहीं थे और उन्होंने उसे दंड देने का निश्चय किया। उन्होंने राजा के सपने में प्रकट होकर कहा, "हे राजा, तुमने मेरी उपासना छोड़ दी है और लोभ-अहंकार में फंसे हो। यदि तुम मेरे व्रतों का पालन नहीं करोगे, तो तुम्हें राजपाट और धन-संपत्ति से वंचित होना पड़ेगा।"
राजा मंडप सपने से जागा तो वह बहुत डरा हुआ था। उसने अपने ऋषि-मंत्रियों को बुलाकर सपने के बारे में बताया। ऋषियों ने राजा को बताया कि भगवान विष्णु की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए उसे अपाड़ा एकादशी का व्रत करना चाहिए।
राजा मंडप ने ऋषियों के उपदेशानुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपाड़ा एकादशी का व्रत रखा। उसने भगवान विष्णु का पूजन किया और दिन भर उपवास किया। व्रत के प्रभाव से राजा मंडप के सभी पाप धुल गए और वह विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त करके अपने राज्य को पुनः समृद्ध बनाने में सफल हुआ।
अपाड़ा एकादशी व्रत करने से निम्नलिखित फल प्राप्त होते हैं:
अपाड़ा एकादशी का व्रत करने से पहले कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है, जैसे:
अपाड़ा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक उत्तम अवसर है। इस व्रत को श्रद्धा-भक्ति के साथ करने से हम अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।