मुझे यह लिखते हुए गर्व हो रहा है कि मैं अपर्णा दास के बारे में एक लेख लिख रहा हूँ, जो एक ऐसी महिला है जिसने समाज की बाधाओं को तोड़ दिया और पूरे भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया।
अपर्णा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी सीखने की अटूट इच्छा थी। उन्होंने कम उम्र से ही सामाजिक अन्याय और असमानता के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी, खासकर महिलाओं की स्थिति को लेकर।
उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की और एक वकील के रूप में अभ्यास करना शुरू किया, जहाँ उन्होंने गरीबों और वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। वह महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं और उन्होंने दहेज प्रथा और घरेलू हिंसा के खिलाफ अभियान चलाया।
अपर्णा शिक्षा की शक्ति में दृढ़ता से विश्वास करती थीं। उनका मानना था कि शिक्षा लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक बनाने और उन्हें एक बेहतर भविष्य बनाने में सशक्त बनाने का एक शक्तिशाली उपकरण है।
इस विश्वास से प्रेरित होकर, उन्होंने 1997 में एक गैर-सरकारी संगठन "प्रियदर्शिनी महिला शिक्षण समिति" की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य ग्रामीण और हाशिए के समुदायों में महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करना था।
प्रियदर्शिनी ने कई कार्यक्रम शुरू किए, जिनमें स्कूलों की स्थापना, छात्रवृत्ति प्रदान करना और महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल थे। अपर्णा के नेतृत्व में, संगठन ने पूरे भारत में शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अपर्णा का काम सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं था। वह महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की भी प्रबल समर्थक थीं। उन्होंने महिलाओं के लिए कई आश्रय गृह स्थापित किए और वेश्यावृत्ति और तस्करी जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।
अपर्णा दास एक असाधारण व्यक्ति थीं जिन्होंने अपने जीवन को समाज की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उनकी विरासत भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी, खासकर महिलाओं को, जो समाज में सार्थक परिवर्तन लाने का प्रयास करती हैं।
अपर्णा का निधन 2018 में 72 वर्ष की आयु में हुआ। उनकी मृत्यु न केवल उनकी संस्था के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी क्षति थी। लेकिन उनकी विरासत उनके द्वारा स्थापित संगठन और उनके द्वारा किए गए काम के माध्यम से जीवित रहेगी।
अपर्णा दास एक प्रेरणादायक महिला थीं जिन्होंने सामाजिक अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं और उनका मानना था कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली उपकरण है। उनकी विरासत भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी कि वे एक अधिक न्यायसंगत और समान समाज के लिए प्रयास करें।