भारत के स्वतंत्रता दिवस की 64वीं वर्षगांठ पर, 11 अगस्त 2008 को, भारत के एक बेटे ने देश का नाम दुनिया में रोशन कर दिया। अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। यह भारत का ओलंपिक खेलों में पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक था।
अभिनव का जन्म 28 सितंबर 1982 को देहरादून, उत्तराखंड में हुआ था। उनके पिता अशोक बिंद्रा एक व्यापारी थे और उनकी माता बाबी बिंद्रा एक गृहिणी थीं। अभिनव की रुचि बचपन से ही निशानेबाजी में थी। उन्होंने 14 साल की उम्र में पिता के साथ पहली बार राइफल चलाई थी।
अभिनव ने अपनी निशानेबाजी यात्रा को जारी रखा और जल्द ही उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना शुरू कर दिया। 2000 में, उन्होंने सिडनी ओलंपिक में भाग लिया, लेकिन फाइनल में जगह बनाने में असफल रहे। हालाँकि, उन्होंने हार नहीं मानी और अभ्यास जारी रखा।
2008 के बीजिंग ओलंपिक में, अभिनव का लक्ष्य पदक जीतना था। वह फाइनल में पहुँचे और स्थिरता के साथ निशाना लगाते रहे। उन्होंने 699.3 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता। उनकी इस जीत ने भारत को गौरवान्वित किया और देश भर में जश्न मनाया गया।
अभिनव की सफलता के पीछे की कहानी में कुछ खास बातें हैं :अभिनव बिंद्रा की कहानी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। यह हमें सिखाती है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और मानसिक शक्ति से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। अपने स्वर्ण पदक के बाद, अभिनव सेवानिवृत्त हो गए और अब वह एक निशानेबाजी कोच के रूप में काम करते हैं। वह युवा निशानेबाजों को प्रशिक्षित करने और उन्हें ओलंपिक सपने को हासिल करने में मदद करने के लिए समर्पित हैं।
अभिनव बिंद्रा भारत के एक सच्चे नायक हैं। उनकी उपलब्धियों ने देश को गौरवान्वित किया है और उन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बने रहना चाहिए।