अंबेडकर के अनुयायियों द्वारा इस कथन पर विरोध प्रकट किया जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि विभिन्न धर्मों के देवताओं का सम्मान करना चाहिए, लेकिन अंबेडकर को नहीं, क्योंकि वह केवल मानव थे और उन्हें पूजा नहीं की जानी चाहिए।
शाह के इस बयान पर स्वयं अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भाजपा की पुरानी मानसिकता आज भी दिखाई दे रही है।
दूसरी ओर, अंबेडकर के विचारों के समर्थक यह तर्क देते हैं कि अंबेडकर नाम केवल एक नाम नहीं है, बल्कि लाखों दलितों की आकांक्षाओं का प्रतीक है।
वे यह भी कहते हैं कि अंबेडकर का सम्मान करना उनके आदर्शों को अपनाने का एक तरीका है, और उनके जीवन और काम के आदर्शों का सम्मान किए बिना उनका सम्मान करना व्यर्थ है।
इस मामले पर विवाद जारी है, और यह देखा जाना बाकी है कि क्या भाजपा अपने रुख पर कायम रहेगी या विरोध के चलते बयान वापस लेगी।
विवाद एक बयान से उत्पन्न हुआ जहां शाह ने कहा था कि विभिन्न धर्मों के देवताओं का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन अंबेडकर को नहीं, क्योंकि वह केवल मानव थे और उन्हें पूजा नहीं की जानी चाहिए।
इस बयान को अंबेडकर के अनुयायियों द्वारा कड़ी प्रतिक्रिया मिली, जिन्होंने उनके बयान की निंदा की और इसे अंबेडकर के प्रति अपमानजनक बताया।
हालाँकि, कुछ लोगों ने शाह के बयान का समर्थन किया, यह तर्क देते हुए कि अंबेडकर केवल एक इंसान थे और उन्हें पूजा नहीं की जानी चाहिए।
इस विवाद से भाजपा को कुछ नुकसान हुआ है, क्योंकि इसने पार्टी और उसके नेतृत्व के खिलाफ व्यापक विरोध का कारण बना है।
यह विवाद यह भी दर्शाता है कि भारत में जाति अभी भी एक संवेदनशील मुद्दा है, और राजनीतिक नेताओं को ऐसे बयान देते समय सावधान रहने की जरूरत है जो धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं।
इस लेख के निष्कर्ष में, यह कहा जा सकता है कि अंबेडकर पर शाह का बयान एक विवादास्पद था जिससे विस्तृत विरोध हुआ।
यह विवाद इस बात का संकेत है कि भारत में जाति का प्रश्न अभी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है, और राजनीतिक नेताओं को इस मुद्दे पर बोलते समय सावधानी बरतने की जरूरत है।