बोस जी ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और फिर इंग्लैंड चले गए। वहां उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास की, लेकिन अपने देश के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए इस पद से त्यागपत्र दे दिया।
भारत लौटने पर बोस जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और कई मौकों पर जेल भी गए। लेकिन भारत को अहिंसक तरीके से आजादी दिलाने के गांधी जी के तरीकों से वो असहमत थे।
आज़ाद हिंद फौज ने भारत के पूर्वोत्तर भाग में अंग्रेज़ों से कई लड़ाइयाँ लड़ीं। हालांकि, युद्ध की स्थिति बदलने के साथ ही आज़ाद हिंद फौज को भी पीछे हटना पड़ा। युद्ध के अंत में, बोस जी रहस्यमय परिस्थितियों में 18 अगस्त, 1945 को लापता हो गए। उनकी मृत्यु की वास्तविकता आज भी एक रहस्य है।
इसके बावजूद, सुभाष चंद्र बोस भारत के एक अमर नायक बने हुए हैं। उनकी बहादुरी, त्याग और देशभक्ति आज भी भारतीयों को प्रेरित करती है। उनके नारे "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" और "जय हिंद" राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के प्रतीक बन गए हैं।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने अहिंसक और सशस्त्र दोनों तरह के आंदोलनों का नेतृत्व किया, और देश को अंग्रेज़ों से मुक्त कराने के लिए अपने जीवन को न्योछावर करने को तैयार थे। वे हमेशा भारतीय इतिहास के एक महान नायक के रूप में याद किए जाएंगे, जिन्होंने भारत की आज़ादी की कहानी को बदल दिया।