माध्यमिक स्कूल प्रमाणपत्र या SSC की परीक्षा से जुड़ी मेरी यात्रा कुछ साल पहले शुरू हुई थी। मैं एक औसत दर्जे का छात्र था, जिसे पढ़ाई से ज़्यादा मस्ती करना पसंद था। लेकिन जब दसवीं का साल आया तो माहौल एकदम से बदल गया। हर कोई सिर्फ SSC, SSC और SSC की रट लगा रहा था।
जब मेरी माँ ने मुझे भी पढ़ने के लिए कहा तो मैंने तय किया कि अब मस्ती किनारे रखनी होगी। मैंने पढ़ाई शुरू की, लेकिन कुछ दिनों बाद ही मुझे लगा कि ये तो मेरे बायें हाथ का खेल है। मैं किताबों को खोलता, कुछ पन्ने पलटता और फिर नींद आ जाती।
मेरी माँ को मेरी ये चाल समझ आ गई और उन्होंने पापा से मेरी ट्यूशन लगवा दी। लेकिन ट्यूशन वाले ने तो मुझे नींद की गोदी में सुला ही दिया। मैं क्लास में बैठा रहता, पर मेरे दिमाग में कोई बात नहीं जाती।
इस तरह, मैं अपनी तैयारी में बुरी तरह से फँस चुका था। मैं न तो खुद पढ़ पा रहा था और न ही ट्यूशन की मदद ले पा रहा था। ऐसे में, मैंने हार मानने की सोच ली थी। लेकिन तब पापा ने मुझे एक बात कही, "बेटा, हार मानना कमज़ोरों का काम है। तुम्हें लड़ना है, चाहे कुछ भी हो।"
पापा की बातों ने मुझे हिला दिया। मैंने तय किया कि अब मैं अपनी कमज़ोरी को मिटाऊँगा और SSC की परीक्षा में अच्छा स्कोर करके दिखाऊँगा। मैंने अपने कमरे में घंटों बैठकर पढ़ाई की। रातों की नींद भी मैंने उड़ा दी।
परीक्षा के दिन मैं काफ़ी नर्वस था। लेकिन मैंने अपने आपको संभाला और पूरे आत्मविश्वास से पेपर दिया। परीक्षा के बाद मुझे लगा कि मैंने अपना बेस्ट दिया है।
परिणाम के दिन, मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था। जैसे ही रिजल्ट आया, मेरे होश उड़ गए। मैंने 90% से ज़्यादा अंक हासिल किए थे। मैं खुशी से झूम उठा।
SSC की वो नीरस राह आज भी मेरे ज़ेहन में ताज़ा है। मुझे याद है कि मैंने कितनी मेहनत की थी और कितनी बार हार मानने के करीब आ गया था। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और आखिरकार सफलता हासिल की।
अगर आप भी SSC की तैयारी कर रहे हैं तो मेरी आपसे सिर्फ एक गुज़ारिश है: कभी हार मत मानना। चाहे कुछ भी हो, लड़ते रहना। आपका रास्ता भले ही नीरस हो, लेकिन मंज़िल एकदम मीठी होगी।
तो दोस्त, मेरी बात याद रखना: "SSC की राह नीरस होगी, पर मंज़िल लाजवाब होगी।"