भारत के विशाल भूगोल में आंतरिक सुरक्षा की रक्षा करना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) इस चुनौती को बड़े गर्व और प्रतिबद्धता के साथ निभाता है।
एक गौरवशाली इतिहाससीआरपीएफ की स्थापना 27 जुलाई, 1939 को की गई थी और तब से यह लगातार देश की रक्षा में सबसे आगे रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर कश्मीर संघर्ष और नक्सल विद्रोह तक, सीआरपीएफ ने हर युद्ध के मैदान में अपनी बहादुरी और बलिदान का परिचय दिया है।
विविध भूमिकाएँसीआरपीएफ की भूमिका केवल विद्रोह विरोधी अभियानों तक ही सीमित नहीं है। यह भीड़ नियंत्रण, आतंकवाद विरोधी उपायों, चुनाव ड्यूटी और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल है। अपने एलीट कमांडो बटालियनों के साथ, सीआरपीएफ देश के लिए एक जबरदस्त बल गुणक है।
सीआरपीएफ के जवान अपने साहस और बलिदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने कर्तव्य के पथ पर अनगिनत बार अपने प्राणों की आहुति दी है। उनके सर्वोच्च बलिदान की कहानियाँ राष्ट्र में गौरव और प्रेरणा का स्रोत हैं।
सीआरपीएफ भारत के नागरिकों के लिए आशा और सुरक्षा का प्रतीक है। इसकी उपस्थिति विद्रोहियों, आतंकवादियों और शांति को बाधित करने वालों को एक शक्तिशाली संदेश भेजती है। सीआरपीएफ का साहस, बलिदान और पेशेवरता हमें निश्चित करती है कि हमारे देश को सुरक्षित हाथों में रखा गया है।
आज, जैसे ही हम सीआरपीएफ के बहादुर जवानों के बलिदान को याद करते हैं, आइए हम उनके साहस और निस्वार्थ भावना का सम्मान करें। आइए हम उनके द्वारा दी गई सुरक्षा और शांति के लिए आभारी बनें और उनके द्वारा संरक्षित राष्ट्र होने पर गर्व करें।