डॉ. भीमराव आंबेडकर, जिन्हें "बाबासाहेब" के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दलितों और अछूतों के उत्थान के लिए एक अथक योद्धा थे। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के एक अछूत परिवार में हुआ था।
एक अछूत के रूप में, आंबेडकर को भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए संघर्ष किया, लेकिन अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प के कारण, उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
आंबेडकर एक प्रखर लेखक और वक्ता थे। उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कई पत्रिकाएं और समाचार पत्र शुरू किए। उन्होंने हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना की, जिसे उन्होंने दलितों पर किए गए अन्याय का मूल कारण बताया।
आंबेडकर ने दलितों के लिए आरक्षण की मांग की, ताकि वे शिक्षा और रोजगार में प्रवेश कर सकें। उन्होंने भारत के संविधान के प्रारूपण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने दलितों के लिए मौलिक अधिकार और संरक्षण शामिल किया।
1956 में, आंबेडकर बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए, यह मानते हुए कि यह एक ऐसा धर्म था जो सभी को समानता का अवसर देता है। उनका परिवर्तन बौद्ध धर्म में एक बड़ा आंदोलन बन गया, और लाखों दलितों ने उनके नक्शेकदम पर चलकर बौद्ध धर्म को अपनाया।
आंबेडकर 6 दिसंबर, 1956 को निधन हो गया। उन्हें एक महान समाज सुधारक और भारत के दलित समुदाय के नायक के रूप में याद किया जाता है। उनकी विरासत आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है जो समानता और न्याय के लिए लड़ रहे हैं।
आंबेडकर के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके जीवनकाल में थे। जाति व्यवस्था भारत में अभी भी एक बड़ी समस्या है, और दलित अभी भी भेदभाव और हिंसा का सामना करते हैं। आंबेडकर के विचार समानता, न्याय और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं।
आंबेडकर का जीवन हमें साहस और दृढ़ संकल्प की शक्ति की याद दिलाता है। यह हमें पूर्वाग्रह और अन्याय के खिलाफ भी लड़ने के लिए प्रेरित करता है। आइए हम आंबेडकर की विरासत का सम्मान करते हुए एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए काम करें जहां सभी को समानता और न्याय का अवसर मिले।