जनता का फैसला या सत्ताधारियों का खेल?
"एक तरफ देखा जाए तो, नतीजे साफ तौर पर सत्ताधारी पार्टी के फेवर में लग रहे हैं। उन्होंने कई सीटें जीती हैं और विपक्ष को करारी मात दी है। लेकिन दूसरी तरफ, कुछ सीटों पर मिले वोटों का अंतर बहुत कम है। इससे पता चलता है कि चुनाव का मुकाबला काफी करीबी था और जनता को प्रभावित करने के लिए सत्ताधारी पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ऐसे में, यह कहना मुश्किल है कि ये नतीजे वास्तव में जनता की राय को दर्शाते हैं या नहीं।"कम वोटिंग, बड़ी जीत?
"एक और दिलचस्प बात जो इन चुनावों में देखी गई वो है मतदाताओं की कम संख्या। कई जगहों पर वोटिंग प्रतिशत 50% से भी कम रहा। इससे पता चलता है कि या तो जनता को इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं थी या फिर सत्ताधारी पार्टी ने मतदान को प्रभावित करने के लिए कोई तरीका निकाल लिया था। कम वोटिंग के बावजूद सत्ताधारी पार्टी की बड़ी जीत इस बात की तरफ इशारा करती है कि कुछ गड़बड़ जरूर हुई होगी।"क्या है सच?
"उपचुनाव के नतीजे अभी भी एक पहेली बनकर रह गए हैं। क्या ये नतीजे वास्तव में जनता के फैसले को दर्शाते हैं या फिर यह सत्ताधारियों के खेल का एक और दौर है? इस सवाल का जवाब तो वही लोग जानते होंगे जिन्होंने इसे रचा है। लेकिन एक बात तो साफ है कि इन नतीजों से लोकतंत्र की स्थिति पर सवाल उठे हैं और यह सोचने को मजबूर करते हैं कि क्या हमारी आवाज अब मायने नहीं रखती।"जागरूक रहना जरूरी
"इन उपचुनाव के नतीजे हमें सिखाते हैं कि हमें सत्ताधारियों की चालबाजियों से सावधान रहना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी आवाज दबाई न जाए और हमारा वोट सही जगह इस्तेमाल किया जाए। लोकतंत्र तभी सफल होगा जब जनता सतर्क और जागरूक होगी। यह समय है कि हम अपनी आंखें खोलें और सच्चाई का पता लगाएं।"