एक मेरा अविस्मरणीय एकादशी व्रत
पवित्र एकादशी का व्रत, हिंदू धर्म में श्रद्धा और त्याग का प्रतीक, मेरे जीवन में एक अविस्मरणीय अनुभव बन गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उपवास, ध्यान और आध्यात्मिक जागृति पर जोर दिया जाता है।
मेरी पहली एकादशी यादों की यात्रा है। मैं अपनी प्यारी दादी के साथ मंदिर गया था, जो एक धर्मपरायण महिला थीं। मंदिर का वातावरण पवित्र और शांत था। भक्तजन मंत्रों का जाप कर रहे थे और भगवान विष्णु की मूर्ति को फूल अर्पित कर रहे थे। उस पल, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पवित्रता और दिव्यता से घिरा हुआ हूँ।
जैसे-जैसे व्रत आगे बढ़ा, उपवास ने मुझे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से चुनौती दी। पहला दिन सबसे कठिन था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैंने धीरे-धीरे भूख पर नियंत्रण पा लिया। ध्यान और प्रार्थना ने मुझे आत्मनिरीक्षण करने और अपने विचारों को शांत करने में मदद की।
रात को, मैं मंदिर फिर से गया। इस बार, भक्तों की भीड़ और अधिक थी, और वातावरण और अधिक उत्साहपूर्ण था। हमने भजन गाए और भगवान विष्णु की आरती की। उस पल, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं भक्ति के समुद्र में बह रहा हूँ।
व्रत के अंत में, मैं आध्यात्मिक रूप से नवीकृत और अपने आध्यात्मिक पथ पर अधिक दृढ़ निश्चयी महसूस कर रहा था। एकादशी का अनुभव एक तीर्थयात्रा की तरह था जिसने मुझे अपने भीतर की शक्ति और भगवान के प्रति मेरी भक्ति का एहसास कराया।
इस एकादशी व्रत के वर्षों बाद भी, इसकी यादें मेरे दिल में ताजा हैं। यह वह अनुभव है जिसने मुझे आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है। मैं अक्सर उस पवित्र दिन को याद करता हूँ और उससे शक्ति और प्रेरणा प्राप्त करता हूँ।
एक असामान्य अनुभव:
मेरी एक यादगार एकादशी एक निर्जन स्थान पर हुई। मैं एक जंगल के किनारे पर एक छोटे से मंदिर में गया था। मंदिर खाली था, और वातावरण शांत और शांतिपूर्ण था।
जैसे ही मैं मंदिर में प्रवेश किया, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अतीत में वापस जा रहा हूँ। मंदिर की दीवारों पर प्राचीन नक्काशी और पेंटिंग थीं, और हवा में एक पवित्र सुगंध थी। मैं भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने बैठ गया और ध्यान करने लगा।
घंटों बीत गए, लेकिन मुझे समय का कोई एहसास नहीं था। मैं पूरी तरह से मंत्रों और भगवान विष्णु की उपस्थिति में खो गया था। अचानक, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे चारों ओर ऊर्जा बढ़ रही है। मैंने अपनी आँखें खोलीं और एक तेज रोशनी देखी जो मूर्ति से निकल रही थी।
प्रकाश ने मेरे पूरे शरीर को ढँक लिया और मुझे असीम शांति और आनंद की अनुभूति हुई। ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध हो रहे हैं। उस पल, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं भगवान विष्णु के साथ एक हो गया हूँ।
वह अनुभव अद्भुत और परिवर्तनकारी था। एकादशी व्रत केवल भूख और त्याग से कहीं अधिक है। यह आध्यात्मिक जागृति और दिव्यता से जुड़ने का अवसर है।