ओलंपिक हॉकी: एक रंगीन इतिहास




ओलंपिक खेलों में हॉकी की शुरुआत 1908 में लंदन में पुरुष प्रतियोगिता के साथ हुई थी। महिला हॉकी को 1980 में मॉस्को में ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया था।
हॉकी में दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भाग लेते हैं और यह ओलंपिक खेलों में सबसे तेज़ और सबसे कौशलपूर्ण खेलों में से एक है। मैच 60 मिनट का होता है, जिसमें प्रत्येक हाफ 30 मिनट का होता है। मैदान 91.4 मीटर लंबा और 55 मीटर चौड़ा है, और गोल 3.66 मीटर चौड़ा और 2.13 मीटर ऊंचा है।
हॉकी में दो टीमें होती हैं, जिनमें से प्रत्येक में 11 खिलाड़ी होते हैं। खिलाड़ी एक स्टिक का उपयोग गेंद को गोल में मारने के लिए करते हैं। गेंद को पैर से मारने या उसे संभालने की अनुमति नहीं है।
ओलंपिक हॉकी में सबसे सफल टीम भारत है, जिसने 1928 से 1956 तक लगातार छह स्वर्ण पदक जीते हैं। अन्य सफल टीमों में पाकिस्तान, नीदरलैंड, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
ओलंपिक हॉकी का इतिहास कई यादगार मैचों से भरा पड़ा है। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों के फाइनल में पाकिस्तान ने पश्चिम जर्मनी को 1-0 से हराया था। यह मैच इतना रोमांचक था कि इसे "म्यूनिख का चमत्कार" कहा गया।
1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेलों के फाइनल में पाकिस्तान ने एक बार फिर पश्चिम जर्मनी को हराया, इस बार 4-2 से। इस जीत ने पाकिस्तान को लगातार दूसरा ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया।
2000 के सिडनी ओलंपिक खेलों के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने नीदरलैंड को 3-3 से हराया और पेनल्टी शूटआउट में जीत दर्ज की। यह ऑस्ट्रेलिया का पहला ओलंपिक हॉकी स्वर्ण पदक था।
हॉकी ओलंपिक खेलों में एक लोकप्रिय खेल है और यह दुनिया भर के लाखों लोगों द्वारा देखा जाता है। यह एक रोमांचक और तेज़-तर्रार खेल है जो कौशल, गति और सहनशक्ति की परीक्षा लेता है।