आजादी के अमृत महोत्सव के इस विशेष अवसर पर हम उन महान सेनानियों को याद करना चाहते हैं, जिन्होंने हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इन वीर सपूतों में एक नाम है कनकलता बरुआ का, जिन्होंने मात्र 17 वर्ष की आयु में अपने प्राणों का बलिदान दिया।
कनकलता का जन्म 22 दिसंबर, 1924 को असम के गोहाटी में हुआ था। वे एक मेधावी छात्रा थीं और राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित थीं। भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के समय कनकलता महज 16 वर्ष की थीं, लेकिन वे इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं।
20 सितंबर, 1942 को कनकलता के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला गया, जिस पर अंग्रेज पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस लाठीचार्ज में कनकलता के सिर पर गंभीर चोट आई और वे बेहोश हो गईं। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां 23 सितंबर, 1942 को 17 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली।
कनकलता की वीरता और बलिदान को पूरे देश ने सराहा। उन्हें भारत की स्वतंत्रता संग्राम की एक महान शहीद के रूप में याद किया जाता है। उनके सम्मान में गोहाटी में एक स्मारक और संग्रहालय बनाया गया है।
कनकलता का जीवन और बलिदान हमें स्वतंत्रता के महत्व और हमारे देश के लिए बलिदान देने वालों के प्रति आभार की भावना से भर देता है। आजादी के इस अमृत महोत्सव पर हम कनकलता जैसे महान सेनानियों को याद करें और उनके सपनों के भारत को बनाने के लिए संकल्प लें।
कनकलता की वीरता की कहानी:कनकलता का जीवन और बलिदान हमें स्वतंत्रता के महत्व और हमारे देश के लिए बलिदान देने वालों के प्रति आभार की भावना से भर देता है। आजादी के इस अमृत महोत्सव पर हम कनकलता जैसे महान सेनानियों को याद करें और उनके सपनों के भारत को बनाने के लिए संकल्प लें।