एक दिन, जब कन्नप्पा जंगल में शिकार कर रहा था, उसे एक ऊँचे पेड़ पर स्थित एक शिवलिंग दिखाई पड़ा। उस क्षण, उसके हृदय में एक अपरिमेय भक्ति जाग उठी। वह शिकार करना भूल गया और दिन-रात शिवलिंग की पूजा करने लगा।
कन्नप्पा की भक्ति और अपरंपरागत पूजा विधियाँ अद्वितीय थीं। वह शिवलिंग पर शहद और जंगली फल चढ़ाता था और उस पर पानी डालने के बजाय अपने मुंह से जलाभिषेक करता था। यद्यपि उसकी विधियाँ बड़ी अजीब थीं, लेकिन उसकी भक्ति की शुद्धता और तीव्रता ने भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया।
एक बार, जब कन्नप्पा पूजा कर रहा था, तो शिवलिंग से एक काँटा निकला और कन्नप्पा की आँख में घुस गया। बिना सोचे समझे, कन्नप्पा ने अपनी दूसरी आँख को निकाल लिया और उसे शिवलिंग में रख दिया, यह कहते हुए कि, "हे भगवान, अब मेरे पास आपको देखने के लिए केवल एक ही आँख है, तो आप दूसरी आँख क्यों रखना चाहेंगे?"
भवान शिव कन्नप्पा की भक्ति और आत्म-त्याग से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उसे प्रकट होकर आशीर्वाद दिया। उन्होंने कन्नप्पा की दोनों आँखों को बहाल कर दिया और उसे अमरता प्रदान की।
कन्नप्पा की कहानी भक्ति और अटूट विश्वास की एक प्रेरक कहानी है। वह सिखाता है कि भक्ति किसी धर्म या कर्मकांड की सीमा से बंधी नहीं है, बल्कि यह प्रेम और पूर्ण समर्पण का एक शुद्ध रूप है।
आज भी, कन्नप्पा को भक्ति और आत्मसमर्पण के एक आदर्श के रूप में पूजा जाता है। उसकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने पूरे हृदय से प्रेम करें, चाहे परिणाम कुछ भी हो।