कन्‍नप्‍पा: भक्ति की अटूट निष्ठा की कहानी




भारतीय पौराणिक कथाओं में कन्‍नप्‍पा की कहानी भक्ति और निष्ठा की एक अटूट कथा है। यह एक ऐसे व्‍यक्ति की कहानी है जिसने भोलेनाथ को अपना सर्वस्‍व अर्पित कर दिया था।

कन्‍नप्‍पा की कहानी


कन्‍नप्‍पा एक व्‍याध था, यानी शिकारी। वह अपनी आजीविका के लिए जानवरों का शिकार करता था। एक दिन, शिकार की तलाश में भटकते हुए, वह भगवान शिव के दक्षिण भारतीय मंदिर काशी विश्‍वनाथ मंदिर पहुंचा। मंदिर के गर्भगृह में, वह भगवान शिव की मूर्ति की दिव्‍यता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें अपना ईश्‍वर मान लिया।

भक्ति की निष्ठा


कन्‍नप्‍पा की भक्ति की निष्ठा असाधारण थी। वह मंदिर में रहा और भगवान शिव की मूर्ति की सेवा करने लगा जैसे वे उसके अपने बच्‍चे हों। वह उन्‍हें फूल, फल और पत्‍ते चढ़ाता। लेकिन सबसे अनोखी बात यह थी कि वह उन्‍हें अपना खून भी अर्पित करता था।

आंख की कहानी


एक बार, जब कन्‍नप्‍पा मंदिर में फूल चढ़ा रहा था, तो फूल का एक टुकड़ा भगवान शिव की आंख पर गिर गया। कन्‍नप्‍पा को गुस्‍सा आ गया और उसने अपनी ही दाईं आंख निकालकर भगवान शिव की आंख पर रख दी। भगवान शिव इतने प्रसन्‍न हुए कि उन्‍होंने उसे अपनी दिव्‍य दृष्टि प्रदान की।

पत्ते का कान


फिर एक बार, जब कन्‍नप्‍पा पशुओं का शिकार कर रहा था, तो एक तीर गलती से भगवान शिव की मूर्ति के कान में जा लगा। कन्‍नप्‍पा को बहुत दुख हुआ और उसने अपने बाएं कान को काटकर मूर्ति पर रख दिया। भगवान शिव ने फिर से प्रसन्‍न होकर उसे दिव्‍य श्रवण क्षमता प्रदान की।

मुक्ति का वरदान


कन्‍नप्‍पा की अनन्य भक्ति से भगवान शिव इतने संतुष्‍ट थे कि उन्‍होंने उसे मुक्ति का वरदान दिया। कन्‍नप्‍पा को कैलाश पर्वत ले जाया गया, जहां वह भगवान शिव के साथ रहने गए।

कन्‍नप्‍पा की विरासत


कन्‍नप्‍पा की कहानी सदियों से भक्ति और निष्ठा का एक प्रतीक बनी हुई है। यह हमें सिखाती है कि ईश्‍वर के प्रति समर्पण और प्रेम ही सबसे बड़ी पूजा है। कन्‍नप्‍पा की भक्ति आज भी भारतीयों को प्रेरणा देती है और भगवान शिव के प्रति उनकी श्रद्धा का एक प्रमाण है।