कैप्टन अंशुमान सिंह




आज मैं एक ऐसे योद्धा की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने भारत के गर्व और सम्मान के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। कैप्टन अंशुमान सिंह, भारतीय सेना के एक वीर सैनिक थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था।

बचपन और शिक्षा

कैप्टन अंशुमान सिंह का जन्म दिल्ली में एक राजपूत परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें देश सेवा का जुनून था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट कोलंबस स्कूल, दिल्ली से पूरी की और फिर नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में प्रवेश लिया।

सेना में करियर

एनडीए से स्नातक होने के बाद, कैप्टन अंशुमान सिंह को 8वीं जाट रेजिमेंट में नियुक्त किया गया। वह एक कुशल और निडर सैनिक थे, जिन्होंने जल्द ही अपने वरिष्ठों और सहकर्मियों का सम्मान अर्जित किया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में कई ऑपरेशनों में भाग लिया।

कारगिल युद्ध

1999 में, जब पाकिस्तानी सेना ने कारगिल में घुसपैठ की, तो कैप्टन अंशुमान सिंह अपनी बटालियन के साथ मोर्चे पर तैनात थे। वह टाइगर हिल पर एक रणनीतिक चोटी को वापस लेने के लिए शुरू किए गए एक ऑपरेशन में शामिल थे।

वीरतापूर्वक लड़ाई और बलिदान

इस ऑपरेशन के दौरान, कैप्टन सिंह की बटालियन को भारी दुश्मन की गोलाबारी का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, उन्होंने और उनकी टीम ने साहस और दृढ़ संकल्प के साथ लड़ना जारी रखा। सिंह खुद मोर्चे पर आगे बढ़े, अपने साथियों को प्रेरित किया और दुश्मन पर हमला किया।

दुर्भाग्य से, एक बंदूक की गोली से कैप्टन सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। फिर भी, उन्होंने आखिरी सांस तक लड़ना जारी रखा, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके साथी अपने मिशन को पूरा कर सकें।

सम्मान और विरासत

अपनी वीरता के लिए, कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। उन्होंने अपने अदम्य साहस और बलिदान से पूरे देश को गौरवान्वित किया।

कैप्टन अंशुमान सिंह आज भी भारतीय सेना के लिए एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी युवाओं को देश सेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी। वह हमेशा एक ऐसे योद्धा के रूप में याद किए जाएंगे, जिन्होंने अपनी जान देकर भारत के सम्मान और अखंडता की रक्षा की।