भेदभाव की दीवारों को तोड़ते हुए, कपिल देव ने भारतीय क्रिकेट में एक क्रांति ला दी। एक ऐसे देश में जहां जाति और धर्म ने लंबे समय तक खेल के मैदानों पर वर्चस्व रखा था, देव ने एक ऐसी टीम बनाई जो सहिष्णुता और एकता का प्रतीक बन गई।
उत्थान की कहानी1959 में चंडीगढ़ में एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे देव के पास क्रिकेटर बनने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं थीं। लेकिन उनके अटूट जुनून और अथक प्रयास ने उन्हें बाधाओं पर काबू पाने और राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के लिए प्रेरित किया।
देव की टीम में विभिन्न धर्मों, जातियों और पृष्ठभूमि के खिलाड़ी शामिल थे। उनके नेतृत्व में, उन्होंने सांप्रदायिकता की बाधाओं को तोड़ा और भारतीय समाज के एक माइक्रोकॉसम का प्रतिनिधित्व किया।
एक प्रसिद्ध उदाहरण 1983 के विश्व कप की जीत के बाद का है। जब विजयी टीम को राष्ट्रपति के निवास पर आमंत्रित किया गया था, तो देव ने यह सुनिश्चित किया कि सभी खिलाड़ी, चाहे उनकी धार्मिक या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, एक साथ बैठकर खाना खाएं।
कीर्तिमान का पहाड़अपनी खेल उपलब्धियों के अलावा, देव अपने निडर स्वभाव और अडिग दृढ़ संकल्प के लिए भी जाने जाते थे।
कपिल देव भारतीय क्रिकेट और समाज में एक अमिट छाप छोड़ गए हैं। उनकी टीम की एकता और सहिष्णुता का संदेश आज भी प्रासंगिक है, जो हमें समुदाय और सद्भाव के महत्व की याद दिलाता है।
भारतीय क्रिकेट के दिग्गज के रूप में, देव हमेशा उस क्रांति के लिए याद किए जाएंगे जो उन्होंने की, जो उन्होंने हासिल किया और जो उन्होंने भारतीयों को प्रेरित किया।
आह्वानकपिल देव की विरासत हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है जहां सभी को समान अवसर और सम्मान मिले। आइए हम उनकी एकता और सहयोग की भावना को अपने हृदय में लेकर चलें और एक ऐसे भारत का निर्माण करें जिस पर हमें गर्व हो सके।