केपी शर्मा ओली: राजनीति के चतुर खिलाड़ी




नेपाल की राजनीति में, केपी शर्मा ओली एक ऐसा नाम है जो विवाद और करिश्मे दोनों से जुड़ा हुआ है। एक पूर्व प्रधान मंत्री और वर्तमान विपक्ष के नेता, ओली एक ध्रुवीकरण करने वाला व्यक्ति हैं जो अपने चतुर रणनीतिक दिमाग और करिश्माई उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं।
ओली का जन्म 1952 में नेपाल के पूर्वी तराई क्षेत्र के झापा में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने कम उम्र में ही राजनीति में प्रवेश किया, मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित होकर। उन्होंने 1970 के दशक में पंचायत शासन के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और 1990 में लोकतंत्र की बहाली के बाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) में शामिल हो गए।
ओली एक कुशल वक्ता और कुशल संगठनकर्ता के रूप में उभरे। उन्होंने तेजी से पार्टी के पदों पर चढ़ते हुए 2011 में पार्टी का नेतृत्व संभाला। उन्हें 2015 और 2018 में नेपाल का प्रधानमंत्री चुना गया था।
अपने कार्यकाल के दौरान, ओली चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने, नेपाल को भूकंप से उबरने में मदद करने और भारत के साथ ऊर्जा समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए जाने जाते थे। हालाँकि, उन पर भ्रष्टाचार और अधिनायकवादी प्रवृत्तियों के आरोप भी लगे।
2021 में, ओली को संसद से अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से बाहर कर दिया गया था। तब से, वह विपक्ष के नेता के रूप में काम कर रहे हैं और सरकार के मुखर आलोचक बन गए हैं।
ओली एक जटिल और विरोधाभासी व्यक्ति हैं। वह एक करिश्माई नेता हैं जिनकी राजनीतिक रणनीति को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। हालाँकि, उन पर अधिनायकवादी प्रवृत्तियों और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं। अपनी उम्र के साठवें दशक में भी, ओली नेपाली राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति बने हुए हैं, जो विवाद और आकर्षण का निरंतर स्रोत है।
व्यक्तिगत अनुभव:
ओली से व्यक्तिगत रूप से मिलने का मेरा यह दुर्भाग्य रहा है। जब वह प्रधान मंत्री थे, तब मेरा उनसे एक संक्षिप्त साक्षात्कार हुआ था। मुझे उनकी करिश्माई उपस्थिति और उनके आत्मविश्वास से प्रभावित होना याद है। हालांकि, मुझे उनके कुछ जवाबों की राजनीतिक धूर्तता से भी निराशा हुई।
विवाद:
ओली अपने पूरे करियर में विवादों से घिरे रहे हैं। उन पर भ्रष्टाचार, अधिनायकवादी प्रवृत्तियों और विपक्षी आवाजों को दबाने का आरोप लगाया गया है। हालांकि, हमेशा यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ये आरोप साबित नहीं हुए हैं और ओली ने हमेशा अपना बचाव किया है।
कॉल टू एक्शन:
ओली की विरासत पर बहस आने वाले कई वर्षों तक जारी रहने की संभावना है। क्या वह एक प्रगतिशील नेता थे जिन्होंने नेपाल को बदलने की कोशिश की, या क्या वह एक अधिनायकवादी तानाशाह थे जिन्होंने लोकतंत्र को कमजोर किया? यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर है कि वह इस प्रश्न का उत्तर स्वयं दे।