पॉलीग्राफ टेस्ट, जिसे "लाई डिटेक्टर टेस्ट" के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसा उपकरण है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापकर यह पता लगाने का प्रयास करता है कि वे सच बोल रहे हैं या नहीं। इनमें रक्तचाप, श्वसन दर और त्वचीय चालकता जैसी प्रतिक्रियाएं शामिल हैं।
पॉलीग्राफ टेस्ट कैसे काम करता है?
जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो आमतौर पर उनके शारीरिक प्रतिक्रियाओं में कुछ परिवर्तन होते हैं, जैसे हृदय गति में वृद्धि या पसीने में वृद्धि। पॉलीग्राफ टेस्ट इन परिवर्तनों को मापता है और उन्हें एक ग्राफ़ में दर्ज करता है। यदि ग्राफ़ पर प्रतिक्रियाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देते हैं, तो इसे झूठ का संकेत माना जा सकता है।
क्या पॉलीग्राफ टेस्ट सटीक हैं?
पॉलीग्राफ टेस्ट की सटीकता पर बहुत बहस होती है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वे सच बोलने वालों का पता लगाने में लगभग 90% सटीक हो सकते हैं, लेकिन अन्य अध्ययनों ने यह भी दिखाया है कि वे गलत सकारात्मक और गलत नकारात्मक दोनों दे सकते हैं।
पॉलीग्राफ टेस्ट का उपयोग कब किया जाता है?
पॉलीग्राफ टेस्ट का उपयोग आमतौर पर कानून प्रवर्तन द्वारा किया जाता है ताकि संदिग्धों से पूछताछ की जा सके और सबूत इकट्ठा किए जा सकें। उनका उपयोग रोजगार स्क्रीनिंग और सुरक्षा जांच के लिए भी किया जा सकता है।
पॉलीग्राफ टेस्ट की नैतिकता
पॉलीग्राफ टेस्ट की नैतिकता पर भी बहस होती है। कुछ लोगों का तर्क है कि यह एक आक्रामक और अपमानजनक प्रक्रिया है जो व्यक्ति पर अनावश्यक तनाव डाल सकती है। अन्य लोगों का मानना है कि यह अपराध को हल करने और न्याय सुनिश्चित करने में मददगार उपकरण हो सकता है।
पॉलीग्राफ टेस्ट एक जटिल और विवादास्पद विषय है। सटीकता और नैतिकता के बारे में चल रही बहस के साथ, यह कहना मुश्किल है कि वे भविष्य में कितने समय तक उपयोग किए जाएंगे।
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