करवा चौथ का पर्व भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा के उदय होने पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं।
करवा चौथ की तैयारियाँ कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। महिलाएँ अपने घरों की साफ-सफाई करती हैं, रंग-बिरंगे कपड़े पहनती हैं और विभिन्न प्रकार के पकवान बनाती हैं। त्योहार के दिन, महिलाएँ सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और पूजा की थाली तैयार करती हैं।
पूजा के बाद, महिलाएँ पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। वे न तो पानी पीती हैं और न ही कुछ खाती हैं। शाम को, चंद्रमा के उदय होने पर, महिलाएँ अपनी पूजा की थाली लेकर बाहर निकलती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। वे भगवान शिव और पार्वती की प्रार्थना करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद, महिलाएँ अपने पति का चेहरा देखती हैं और उनकी पूजा करती हैं। पति भी अपनी पत्नी को उपहार देते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद, महिलाएँ व्रत तोड़ती हैं और विभिन्न प्रकार के पकवानों का आनंद लेती हैं।
करवा चौथ का पर्व महिलाओं की अपने पति के प्रति प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। यह त्योहार महिलाओं और उनके पतियों के बीच बंधन को मजबूत करता है।
हाल के वर्षों में, करवा चौथ का त्योहार धीरे-धीरे बदल रहा है। कुछ महिलाएँ अब निर्जला व्रत नहीं रखती हैं, जबकि कुछ महिलाएँ अपने पति के साथ व्रत साझा करती हैं। हालाँकि, त्योहार का मूल अर्थ वही बना हुआ है। यह त्योहार अभी भी भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए मनाया जाता है।
करवा चौथ का पर्व सभी विवाहित महिलाओं के लिए एक विशेष दिन है। यह एक ऐसा दिन है जब वे अपने पति के लिए अपनी प्रेम और भक्ति व्यक्त करती हैं। यह एक ऐसा दिन है जब वे एक साथ एक नया जीवन शुरू करने का संकल्प लेती हैं।