खेल खेल में




दोस्तों, आपने ये तो सुना ही होगा कि "खेल खेल में ही असली मज़ा होता है।" लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस कहावत का असली मतलब क्या है? क्या वाकई ज़िंदगी में सिर्फ खेलों में ही मज़ा आता है?
ज़रा सोचकर बताइए, क्या आपने कभी किसी गेम में जीत हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है? क्या आपने कभी किसी प्रतियोगिता में भाग लेकर अपने अंदर के प्रतिस्पर्धी को जगाया है? और क्या आपने कभी किसी खेल के दौरान अपनी हदों को पार करते हुए खुद को एक नया मुकाम हासिल करते देखा है?
अगर हाँ, तो यकीनन आपको एहसास होगा कि खेलों में मज़ा सिर्फ जीतने में ही नहीं होता। असली मज़ा तो वो सफर है जो हम उस जीत तक पहुँचने में तय करते हैं। हर कदम पर आने वाली चुनौतियाँ, हर बाधा को पार करते हुए आगे बढ़ने की वो चाहत, और हर गलती से कुछ नया सीखने का मौका - यही वो चीजें हैं जो खेलों को इतना रोमांचक और मज़ेदार बनाती हैं।
ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही है, एक लंबा खेल। और ठीक वैसे ही जैसे खेलों में हमारी हार-जीत से ज़्यादा हमारा सफर महत्वपूर्ण होता है, ज़िंदगी में भी हमारी कामयाबी से ज़्यादा हमारी यात्रा मायने रखती है। ज़िंदगी में भी हमारे लिए असली मज़ा तब है जब हम हर पल को पूरी तरह से जीते हैं, हर चुनौती को एक अवसर की तरह स्वीकार करते हैं, और हर गलती से कुछ नया सीखकर खुद को बेहतर बनाते हैं।
तो अगली बार जब आप किसी खेल में हाथ आज़माएँ, तो जीत-हार की परवाह किए बिना उस सफर का लुत्फ उठाएँ। क्योंकि यकीन मानिए, असली मज़ा "खेल खेल में" ही है।