गुरुचरन सिंह




गुरुचरन सिंह का नाम भारतीय साहित्य जगत में एक चमकते सितारे के रूप में जाना जाता है। एक विलक्षण कवि और व्यंग्यकार के रूप में, उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज की जटिलताओं और नासूरों को उजागर किया। उनकी कविताएँ और व्यंग्य भारतीय समाज की विडंबना, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानताओं को उजागर करने के लिए जानी जाती हैं।
गुरुचरन सिंह का जन्म 1948 में पंजाब के एक गाँव में हुआ था। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शुरुआत में, उन्होंने एक शिक्षक के रूप में काम किया, लेकिन जल्द ही साहित्य के लिए उनके जुनून ने उन्हें पूर्णकालिक लेखन में आने के लिए प्रेरित किया।
सिंह की पहली कविता संग्रह, "द बजरंग बालाड," 1976 में प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह ने भारतीय समाज में धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक हिंसा की समस्याओं पर गहराई से ध्यान दिया। उनकी कविताएँ अक्सर तीखे व्यंग्य और गहरी भावनाओं से भरी होती थीं।
1980 के दशक में, सिंह ने व्यंग्य की ओर रुख किया और "द स्टेट्समैन" अखबार के लिए नियमित रूप से लेख लिखना शुरू किया। उनके व्यंग्य भारतीय राजनीति, नौकरशाही और समाज के पाखंड को उजागर करने के लिए जाने जाते थे। उनके व्यंग्य तीखे थे, लेकिन उनमें एक बारीक हास्य भी था जो पाठकों को गुदगुदाता था।
सिंह ने कई कविता संग्रह और व्यंग्य संकलन प्रकाशित किए। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएँ हैं "ए सॉन्ग फॉर हैंग्ड," "द डेथ ऑफ अ लैंग्वेज" और "द ग्रेट इंडियन सर्कस"। उनकी कुछ सबसे लोकप्रिय व्यंग्य संग्रहों में "द हुकर्स इन द फिश" और "द डांस ऑफ द डॉग" शामिल हैं।
सिंह का लेखन भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने समाज की समस्याओं पर ध्यान आकर्षित किया और लोगों को उनके आसपास की दुनिया पर एक आलोचनात्मक नज़र रखने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी कविताएँ और व्यंग्य आज भी उतने ही प्रासंगिक और शक्तिशाली हैं जितने पहले थे।
गुरुचरन सिंह को साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री और पद्म भूषण शामिल हैं। हालाँकि, 2012 में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत भारतीय साहित्य में हमेशा जीवित रहेगी।