गुलक




आपके बचपन की यादों में एक गुलक जरूर होगी। वो लाल रंग की मिट्टी की गोल सी चीज़ जिसमें हम अपने बचत के सिक्के डालते थे। जैसे-जैसे गुलक भरती जाती थी, वैसे-वैसे उसे तोड़ने की उत्सुकता भी बढ़ती जाती थी।
गुलक, बचत की पहली सीख थी। बचपन में ही हमने ये सीख लिया था कि कैसे छोटे-छोटे सिक्कों को जोड़कर बड़ी रकम इकट्ठा की जा सकती है। गुलक ने न केवल हमें पैसा बचाना सिखाया, बल्कि सब्र और संतोष की सीख भी दी।
एक बार, मैं अपनी गुलक को तोड़ने के लिए बहुत उत्साहित था। लंबे समय से इसे भरता रहा था और अब उसे तोड़कर देखने को बेताब था। जैसे ही मैंने उसे तोड़ा, मेरे सामने सिक्कों का ढेर लग गया। मैं खुशी से झूम उठा। मैंने कभी इतना पैसा एक साथ नहीं देखा था।
उस पैसे से मैंने अपने लिए एक नई बाइक खरीदी। वो मेरी पहली बाइक थी और मुझे उस पर बहुत गर्व था। जब मैं उस बाइक पर सवार होकर निकलता था, तो मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं दुनिया का राजा हूं।
गुलक सिर्फ एक मिट्टी का बर्तन नहीं था, वो हमारी बचपन की यादों का एक अटूट हिस्सा था। वो हमें बचत की ताकत सिखाता था, सब्र की अहमियत बताता था और संतोष की महत्ता समझाता था।
आज भी, जब मैं अपनी गुलक से निकाले हुए सिक्कों को देखता हूं, तो मुझे बचपन की वो मासूमियत याद आती है। मुझे वो उत्साह याद आता है जो मुझे अपनी गुलक को भरने में मिलता था। और मुझे वो गर्व याद आता है जो मुझे अपनी बाइक खरीदने में हुआ था।
गुलक, एक छोटा सा बर्तन, लेकिन हमारी जिंदगी में उसकी अहमियत बहुत बड़ी है। बचपन से लेकर आज तक, वो हमें पैसा बचाने, सब्र रखने और संतुष्ट रहने की सीख देता रहा है। इसलिए, अगर आपके पास कभी गुलक रही है, तो उसे संभाल कर रखिए। वो आपकी बचपन की एक अनमोल निशानी है।