गोवर्धन पूजा एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो भगवान कृष्ण की लीलाओं और पहाड़ को देवराज इंद्र पर उनकी जीत का जश्न मनाता है। यह त्योहार दीपावली के ठीक अगले दिन मनाया जाता है, जो कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को पड़ता है।
पौराणिक कथा और भगवान कृष्ण की लीला
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान इंद्र बहुत अभिमानी हो गए थे और उनका मानना था कि वे ही सच्चे भगवान हैं। उन्होंने अहंकार में ब्रजवासियों की प्रार्थनाओं को अनदेखा कर दिया, जिससे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए उनकी फसल नष्ट हो गई।
ब्रजवासियों की दुर्दशा देखकर भगवान कृष्ण ने खुद को साबित करने का फैसला किया। उन्होंने ब्रजवासियों को सलाह दी कि वे इंद्र की पूजा बंद कर दें और इसके बजाय गोवर्धन पहाड़ी की पूजा करें, जो ब्रज क्षेत्र का रक्षक था।
इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने भारी बारिश करके ब्रज को तबाह करने का फैसला किया। लेकिन भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पहाड़ी को उठा लिया और इसे छतरी की तरह ब्रजवासियों के ऊपर रख दिया। सात दिनों और सात रातों तक मूसलाधार बारिश हुई, लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से ब्रजवासी सुरक्षित रहे।
अंततः, इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान कृष्ण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। तब से, ब्रजवासियों ने गोवर्धन पहाड़ी की पूजा करने और भगवान कृष्ण की इस यादगार लीला को मनाने के लिए गोवर्धन पूजा मनाई है।
प्रकृति और पशुधन की पूजा
गोवर्धन पूजा न केवल भगवान कृष्ण की लीला का उत्सव है, बल्कि यह प्रकृति और पशुधन की पूजा का भी प्रतीक है। इस त्योहार पर, लोग गायों और बैलों को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं, क्योंकि गायों को पवित्र जानवर माना जाता है। वे गोवर्धन पहाड़ी बनाते हैं और इसे शाखाओं, फूलों और रोशनी से सजाते हैं, जो प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
इस त्योहार के दौरान, लोग पारंपरिक व्यंजनों जैसे अन्नकूट का आनंद लेते हैं, जो विभिन्न प्रकार के भोजन का संग्रह है। यह बहुतायत और समृद्धि का प्रतीक है, और भगवान कृष्ण की गोपियों द्वारा बनाए गए भोजन की याद दिलाता है।
गोवर्धन पूजा एक हर्षोल्लास भरा त्योहार है जो प्रकृति और पशुधन के महत्व को याद दिलाता है। यह भगवान कृष्ण की लीलाओं का उत्सव है, जो हमें उनकी दिव्यता और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा की याद दिलाता है।