दीपावली की खुशियों के दूसरे दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। इस त्यौहार का ब्रजवासियों के जीवन में विशेष महत्व है, क्योंकि यह उनके प्रिय कृष्ण के साथ अटूट बंधन का प्रतीक है।
मान्यता है कि एक बार भगवान इंद्र ब्रज की रक्षा करने वाले गोवर्धन पर्वत से नाराज हो गए और उसकी पूजा करने की मनाही कर दी। तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को ब्रज पर मंडराए इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए अपनी छोटी उंगली पर ही गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिनों तक अपनी उंगली पर पूरे ब्रज को आश्रय दिया। इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की परंपरा शुरू हुई।
गोवर्धन पूजा के दिन, ब्रजवासी गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाते हैं और उसे फूल-पत्तियों से सजाते हैं। इसके चारों ओर अन्नकूट बनाया जाता है, जिसमें तरह-तरह के पकवान भगवान को भोग लगाए जाते हैं। शाम को, गोवर्धन पर्वत की पूजा करके ब्रजवासी भगवान कृष्ण से पशुधन की रक्षा और समृद्धि की कामना करते हैं।
इस त्यौहार की सबसे खास बात यहाँ की गायों की पूजा है। ब्रजवासियों के लिए गायें माता की तरह पूजनीय होती हैं और इस दिन गायों को विशेष रूप से स्नान कराया जाता है, उनके सींगों को सजाया जाता है और उन्हें स्वादिष्ट भोजन खिलाया जाता है।
गोवर्धन पूजा ब्रजवासियों के कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। यह त्यौहार उन्हें यह याद दिलाता है कि कैसे भगवान ने उनकी रक्षा की और उनके प्रति उनकी अटूट श्रद्धा है।