गोवर्धन पूजा: वृंदावन में कृष्ण की रक्षा




गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट के रूप में भी जाना जाता है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति, पर्यावरण और जीवन के महत्व का प्रतीक है।
इस पर्व की उत्पत्ति महाभारत की एक प्रसिद्ध कहानी में हुई है। एक बार जब इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने लगातार बारिश की, जिससे ब्रजवासियों को बहुत परेशानी हुई। कृष्ण ने तब गोवर्धन पर्वत को उठाया और उसे एक छतरी की तरह अपने ऊपर रख लिया, ताकि ब्रजवासियों को इंद्र के क्रोध से बचाया जा सके।

गोवर्धन पूजा इस घटना को याद करती है और प्रकृति की पूजा के महत्व को दर्शाती है। इस दिन, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की एक प्रतीकात्मक आकृति बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है।

गोवर्धन पूजा की विधि सरल है। प्रातःकाल, गोबर से गोवर्धन की एक आकृति बनाई जाती है। फिर उस पर रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर पूजा की जाती है। भक्त गोवर्धन की प्रदक्षिणा करते हैं और "गोवर्धन गिरीधारी, गोपाला कृष्ण गोपाली, गोवर्धन गिरीधर की जय" का जाप करते हैं।

शाम को, गायों और बैलों को रंगोली से सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। भक्त अन्नकूट चढ़ाते हैं, जो विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का मिश्रण है।

गोवर्धन पूजा न केवल कृष्ण की विजय की कहानी है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण की पूजा का भी एक प्रतीक है। यह त्योहार हमें इस बात की याद दिलाता है कि प्रकृति हमारे जीवन का कितना महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इस गोवर्धन पूजा के अवसर पर, आइए हम प्रकृति का सम्मान करने और इसकी रक्षा करने का संकल्प लें। आइए हम अपने जीवन में भगवान कृष्ण के समान साहस और करुणा को भी अपनाएं।