चंपई सोरेन का जन्म 1954 में झारखंड के एक आदिवासी परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें अपने लोगों के संघर्षों का सामना करना पड़ा था। अमीर जमींदारों ने उनके गांव पर कब्जा कर लिया था, और आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया था।
आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाईइस अन्याय ने चंपई सोरेन के दिल में एक ज्योति जलाई। उन्होंने अपने लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। 1978 में, वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल हुए, जो एक पार्टी थी जो झारखंड को एक अलग राज्य बनाने के लिए अभियान चला रही थी।
सोरेन ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व और जमीनी स्तर के कनेक्शन से जल्दी ही पार्टी में अपना प्रभाव दिखाया। वह आदिवासियों के बीच एक लोकप्रिय व्यक्ति बन गए, जिन्होंने उन्हें अपने नेता के रूप में देखा।
झारखंड का गठनसोरेन के नेतृत्व में, झामुमो ने झारखंड के गठन के लिए एक शक्तिशाली आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने जनसभाओं और रैलियों का आयोजन किया, लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया।
आखिरकार, 15 नवंबर 2000 को झारखंड को एक अलग राज्य बनाया गया। सोरेन को राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया।
आदिवासी कल्याण पर ध्यानएक मुख्यमंत्री के रूप में, सोरेन ने आदिवासी कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के क्षेत्रों में सुधार किए। उन्होंने आदिवासियों को उनकी जमीन वापस दिलाने के लिए भी काम किया।
सोरेन का शासन भ्रष्टाचार और हिंसा से मुक्त नहीं था। हालाँकि, उन्होंने आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अथक प्रयास किया।
एक विरासत कायम रखना2019 में चंपई सोरेन का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जारी है। वह एक आदिवासी नेता थे जिन्होंने अपने लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने झारखंड के गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राज्य के विकास में योगदान दिया।
आज, सोरेन को भारत के सबसे प्रभावशाली आदिवासी नेताओं में से एक के रूप में याद किया जाता है। उनकी कहानी सरकार और उद्योग द्वारा हाशिए पर डाले गए समुदाय के लिए लड़ने वाले व्यक्ति की कहानी है।
चंपई सोरेन की यात्रा हमें याद दिलाती है कि एक व्यक्ति भी, विपरीत परिस्थितियों में भी, परिवर्तन ला सकता है। उनकी विरासत आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने और एक अधिक न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए प्रेरित करती रहेगी।