झंडा फहराना




क्या आप जानते हैं कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा क्यों है? क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे तिरंगे को फहराते समय हमें सम्मान की मुद्रा में क्यों खड़ा होना चाहिए? आज हम आपको तिरंगे के इतिहास और उसके महत्व के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताएँगे।
तिरंगे का इतिहास:
तिरंगे की अवधारणा सबसे पहले 1906 में कलकत्ता में आयोजित एक रैली में पेश की गई थी। उस रैली का आयोजन विश्वेश्वरानंद भट्टाचार्य द्वारा किया गया था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्ति थे। तिरंगे में तीन रंग थे: हरा, पीला और लाल। हरा रंग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता था, पीला रंग हिंदुओं का और लाल रंग ईसाइयों का।
1921 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तिरंगे को अपने आधिकारिक ध्वज के रूप में अपनाया। हालाँकि, उस समय ध्वज में चरखा नहीं था। चरखा 1931 में महात्मा गांधी द्वारा जोड़ा गया था। चरखा स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था, जिसका उद्देश्य विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहित करना था।
तिरंगे का महत्व:
तिरंगा भारत के राष्ट्रीय गौरव और संप्रभुता का प्रतीक है। यह हमारी स्वतंत्रता और लोकतंत्र के संघर्ष का भी प्रतीक है। तिरंगे के तीन रंगों का भी अपना विशेष महत्व है।
* केसरिया रंग: साहस, त्याग और बलिदान का प्रतीक है।
* सफेद रंग: सत्य, शांति और एकता का प्रतीक है।
* हरा रंग: विकास, समृद्धि और आशा का प्रतीक है।
तिरंगे को फहराते समय सम्मान:
तिरंगे को फहराते समय सम्मान की मुद्रा में खड़ा होना हमारे राष्ट्रीय ध्वज के प्रति हमारे सम्मान का प्रतीक है। यह हमारे राष्ट्र के प्रति हमारे प्रेम और गर्व को व्यक्त करता है। तिरंगे को फहराते समय हमें हमेशा निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
* तिरंगा हमेशा साफ और प्रेस किया हुआ होना चाहिए।
* तिरंगे को कभी भी जमीन पर नहीं गिरना चाहिए।
* तिरंगे को हमेशा धीरे-धीरे और सम्मानपूर्वक फहराना चाहिए।
* तिरंगे के नीचे राष्ट्रगान गाना चाहिए।
तिरंगा हमारे राष्ट्र का एक अभिन्न अंग है। यह हमारी पहचान का प्रतीक है और इसकी हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। हमें अपने तिरंगे पर गर्व होना चाहिए और हमेशा इसका सम्मान करना चाहिए।