ये वाकया मुझे हमेशा याद रहता है. जब मैं स्कूल में था, तब मुझे अक्सर स्कूल बस से घर लौटना पड़ता था. एक दिन, बस में सवार होने के बाद, मैंने देखा कि एक बुजुर्ग महिला अपनी सीट पर बैठी हैं. उनकी गोद में एक पुराना चमड़े का पर्स रखा हुआ था.
जैसे ही बस चलने लगी, महिला ने गलती से अपना पर्स फर्श पर गिरा दिया. मुझे लगा कि मैं उनकी मदद करूंगा, इसलिए मैं झुका और पर्स उठा लिया. जब मैं महिला को पर्स लौटाने गया, तो वह बहुत खुश हुईं.
उन्होंने मुझे बताया कि पर्स में उनके जीवन की सारी बचत थी. उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने इसे खो दिया होता, तो वे बहुत परेशानी में पड़ जातीं.
मैंने महिला को यह कहते हुए आश्वस्त किया कि अब उनके पर्स की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. मैं उन्हें अपने घर तक भी छोड़ दूंगा.
महिला ने मेरी मदद के लिए मुझे बहुत धन्यवाद दिया. जब हम उनके घर पहुंचे, तो उन्होंने मुझे एक छोटा सा उपहार दिया. यह एक पुरानी घड़ी थी.
महिला ने कहा, "ये घड़ी मेरे पति की है. वह बहुत पहले ही गुजर चुके हैं. मैं इसे किसी ऐसे व्यक्ति को देना चाहती हूं जो मेहरबान और मददगार है. मुझे लगता है कि तुम वही हो."
मैंने महिला को धन्यवाद दिया और घड़ी ले ली. मैंने उन्हें बताया कि मैं उनकी दयालुता को कभी नहीं भूलूंगा.
रेफ्लेक्शन
इस वाकये से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैंने सीखा कि छोटी-छोटी दयालुताएं भी किसी के जीवन में बड़ा अंतर ला सकती हैं. मैंने यह भी सीखा कि किसी की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, भले ही वे अपरिचित क्यों न हों.
मुझे उस महिला को कभी नहीं भूलूंगा. उनकी दयालुता ने मुझे एक बेहतर इंसान बनाया है.