तेजस्वी तीसरा दिन चंद्रघंटा का




नवरात्रि उत्सव की शुरुआत जय माता दी के नारे से होती है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। पहला दिन शैलपुत्री रूप, दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी रूप, तीसरा दिन चंद्रघंटा रूप, चौथा दिन कुष्मांडा रूप, पाँचवाँ दिन स्कंदमाता रूप, छठा दिन कात्यायनी रूप, सातवाँ दिन कालरात्रि रूप, आठवाँ दिन महागौरी रूप और नौवाँ दिन सिद्धिदात्री रूप की पूजा की जाती है। इन सभी रूपों की पूजा करने से भक्तों को विभिन्न लाभ मिलते हैं।
तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है। देवी के माथे पर एक घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है। देवी की दस भुजाएँ हैं और वे सिंह की सवारी करती हैं। देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को शक्ति, साहस और बुद्धि प्राप्त होती है। इसके साथ ही भक्तों की मनोकामनाएँ भी पूरी होती हैं।
माँ चंद्रघंटा की कथा
एक कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया था, तब भगवान शिव उन्हें लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे थे। देवी सती के शरीर के अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए। देवी सती का माथा जहाँ गिरा था, वहाँ ज्वालामुखी शक्तिपीठ स्थापित हुआ। इसी शक्तिपीठ में माँ चंद्रघंटा का वास है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि इस प्रकार है:
* प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
* पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
* माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा स्थापित करें।
* प्रतिमा पर चंदन का तिलक लगाएँ और पुष्प अर्पित करें।
* देवी को भोग लगाएँ।
* माँ चंद्रघंटा की आरती करें।
* माँ चंद्रघंटा के मंत्र का जाप करें।
माँ चंद्रघंटा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को शक्ति, साहस और बुद्धि प्राप्त होती है। इसके साथ ही भक्तों की मनोकामनाएँ भी पूरी होती हैं।