तिसरी आँख यानी TISS
क्या आपको पता है कि TISS (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज) को भारत की "तिसरी आँख" कहा जाता है? आइए इस अनोखे संस्थान और उसके देश को बदलने के मिशन की पड़ताल करें।
मुंबई की ऊंची इमारतों के ऊपर उठता हुआ, TISS सामाजिक विज्ञान और अनुसंधान का एक विशालकाय है। इसकी स्थापना 1936 में समाज सुधारक सर दोराबजी टाटा ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य से की थी।
सालों से, TISS ने सामाजिक कार्य, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और शहरी योजना जैसे क्षेत्रों के लिए अग्रणी पेशेवर पेश किए हैं। इसकी एक अनूठी विशेषता इसका "फील्डवर्क" मॉडल है, जो छात्रों को ग्रामीण और शहरी समुदायों के साथ काम करने और वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने का पहला हाथ का अनुभव प्रदान करता है।
तिसरी आँख का रूपक
"तिसरी आँख" शब्द TISS की समाज की गहरी समझ और देश की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को दूर करने के उसके मिशन को दर्शाता है। यह एक गहन समझ है जो न केवल सतह पर समस्याओं को देखती है, बल्कि उनकी जड़ों और अंतर्निहित मुद्दों को भी खोदती है।
उदाहरण के लिए, TISS ने ग्रामीण गरीबी के कारणों की पहचान की है और बुनियादी ढांचे में निवेश, शिक्षा तक पहुंच और रोजगार के अवसरों के माध्यम से इसे दूर करने के लिए काम किया है। अपनी शोध और वकालत के माध्यम से, TISS ने सरकारों और नीति निर्माताओं को समाज में व्याप्त असमानताओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है।
समाज सेवा की दीपशिखा
TISS के स्नातक देश भर के समुदायों में बदलाव की दीपशिखा बन गए हैं। वे विकास संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों में काम करते हैं, जो हाशिए के समुदायों को सशक्त बनाने, पर्यावरण की रक्षा करने और समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं।
एक पूर्व छात्र, पूजा, ने आदिवासी बच्चों के लिए एक शिक्षा कार्यक्रम चलाया, जो स्कूल तक नहीं पहुँच पा रहे थे। अपने TISS अनुभव से मिली समझ का उपयोग करते हुए, उसने एक पाठ्यक्रम तैयार किया जो उनकी संस्कृति और भाषा से जुड़ा था, जिससे उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिली।
भविष्य की ओर
आज, TISS सामाजिक न्याय और सतत विकास के लिए एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है। इसका प्रभाव भारत से बढ़कर दुनिया भर के अन्य देशों तक फैला हुआ है, जहां इसके स्नातक विकास पहल में योगदान दे रहे हैं और स्थानीय समस्याओं का समाधान कर रहे हैं।
जैसे-जैसे भारत तेजी से बदल रहा है, TISS को सामाजिक असमानता, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी विकास जैसी नई चुनौतियों से निपटने के लिए विकसित होना जारी रहना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह "तिसरी आँख" आने वाले वर्षों में भी देश को बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित करना जारी रखेगी।