दوارकिश




आपने दिवाली की रंगोली तो बहुत देखी होगी पर क्या कभी ऐसी रंगोली देखी है जिसमें मूर्तियां हो? आपने दीयों की दीवारें तो बहुत देखी होंगी पर क्या कभी ऐसी दीवार देखी है जिसमें दीये जलते हुए धातु के बर्तनों में हों? आपने घरों के दरवाजे पर लक्ष्मी-गणेश के पग तो बहुत देखे होंगे पर क्या कभी ऐसे पग देखे हैं जिन पर चांदी की चमक हो।
उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले के गुरुबख़्शगंज क़स्बे में पिछले 50 वर्षों से दिवाली पर आकर्षक सजावट होती है। यहां दिवाली पर घरों की साफ-सफ़ाई और दीवारों और फर्श पर मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से रंगोली बनाना और दीये जलाना परंपरा रही है। लेकिन करीब 25 साल पहले से यहां के लोग दिवाली पर घरों को सजाने के लिए कुछ अलग-अलग तरह से एक अनोखी पहल शुरू की।
चांदी के बर्तनों में जलती हैं मिट्टी के दीये
गुरुबख़्शगंज में दिवाली पर घरों की दीवारों पर दीयों की दीवारें सजाई जाती हैं और इन दीवारों में दीये मिट्टी के नहीं बल्कि चांदी के बर्तनों में रखे जाते हैं। चांदी के बर्तनों में पानी भरकर उसमें तेल डालकर दीये जलाए जाते हैं और ये दीये घर के बाहर और अंदर दीवारों पर काफ़ी सुंदर दिखाई पड़ते हैं। गांव के लोग बताते हैं कि चांदी के बर्तनों में दीये जलाने का चलन 25 साल पहले शुरू हुआ।
मिट्टी के रंग में अनोखी रंगोली
गुरुबख़्शगंज में दिवाली पर घरों के बाहर और अंदर फर्श पर मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से तरह-तरह की रंगोली बनाई जाती है। पर सबसे खास बात यह है कि इन रंगोली में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। गाय के गोबर से लीपी गई दीवार पर चावल के आटे, हल्दी, कुमकुम और गेरू से रंगोली बनाई जाती है।
चांदी से सजे पगले
गुरुबख़्शगंज में दिवाली पर घरों के दरवाजे पर लक्ष्मी-गणेशजी के पग भी बनाए जाते हैं। लेकिन सबसे खास बात यह है कि यहां लक्ष्मी-गणेश के पगले चांदी से सजाए जाते हैं। चांदी की पतली पन्नी से बने लक्ष्मी-गणेशजी के पगले दिखने में बहुत ही आकर्षक लगते हैं।
अनोखी पहल को देखने आते हैं दूर-दूर से लोग
गुरुबख़्शगंज में दिवाली पर घरों की दीवारों और फर्श पर मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनाई गई रंगोली और चांदी के बर्तनों में जलते दीये देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां दिवाली पर गांव के लोग अपने घरों को इस कदर सजाते हैं कि हर कोई दूर-दूर से लोग देखने आते हैं।