नरक चतुर्दशी




नरक चतुर्दशी दिवाली के त्योहार का दूसरा दिन है। यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन लोग सुबह स्नान करके तिल का तेल लगाते हैं और फिर पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन तेल लगाने से शरीर के सारे रोग दूर हो जाते हैं।

नरक चतुर्दशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, नरकासुर नामक एक राक्षस था जो बहुत बलवान था। उसने देवताओं को हरा दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। तब देवताओं ने भगवान कृष्ण से मदद मांगी। भगवान कृष्ण ने नरकासुर से युद्ध किया और उसे मार डाला। नरकासुर के वध के बाद, भगवान कृष्ण ने सभी देवताओं को स्वर्ग वापस दिलाया।

नरक चतुर्दशी का महत्व

नरक चतुर्दशी का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन लोग तेल लगाकर स्नान करते हैं और पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन तेल लगाने से शरीर के सारे रोग दूर हो जाते हैं। साथ ही, इस दिन दान करने से पुण्य प्राप्त होता है।

नरक चतुर्दशी की परंपराएं

तिल के तेल से स्नान

नरक चतुर्दशी के दिन लोग तिल के तेल से स्नान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर के सारे रोग दूर हो जाते हैं।

पूजा-पाठ

इस दिन लोग भगवान कृष्ण और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। पूजा के बाद, लोग भगवान कृष्ण को भोग लगाते हैं।

दान-पुण्य

नरक चतुर्दशी के दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। इस दिन लोग गरीबों और जरूरतमंदों को दान देते हैं।

नरक चतुर्दशी का पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कुछ जगहों पर, लोग इस दिन पटाखे जलाते हैं और आतिशबाजी करते हैं। अन्य जगहों पर, लोग इस दिन नदी या तालाब में स्नान करते हैं।

नरक चतुर्दशी का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह दिन हमें यह सीख देता है कि हमें हमेशा सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए।