निर्जला एकादशी
क्या आपने कभी सोचा है कि निर्जला एकादशी इतनी पवित्र क्यों मानी जाती है? क्या सिर्फ इसलिए कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है? या क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी скрыा हुआ है? आइए जानते हैं निर्जला एकादशी के बारे में कुछ रोचक बातें...
निर्जला एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भक्त 24 घंटे का उपवास रखते हैं। इस उपवास को सबसे कठिन उपवासों में से एक माना जाता है क्योंकि इस दौरान भक्त पानी भी नहीं पीते हैं।
निर्जला एकादशी का वैज्ञानिक कारण...
आयुर्वेद के अनुसार, ज्येष्ठ महीने में शरीर में पित्त का स्तर बढ़ जाता है। निर्जला एकादशी का उपवास शरीर से अतिरिक्त पित्त को बाहर निकालने में मदद करता है। उपवास के दौरान शरीर डिटॉक्सिफाई होता है और पाचन तंत्र को आराम मिलता है।
इसके अलावा, निर्जला एकादशी के दिन सूर्य अपनी सबसे तेज स्थिति में होता है। इस समय शरीर पर सूर्य की किरणों का असर सबसे ज्यादा होता है। उपवास के दौरान शरीर की पाचन प्रणाली निष्क्रिय रहती है, जिससे शरीर सूर्य की किरणों को तेजी से अवशोषित कर पाता है। इस प्रक्रिया से शरीर में विटामिन डी का उत्पादन बढ़ता है, जो हड्डियों और दांतों के लिए आवश्यक है।
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व...
हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भक्त मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपवास करते हैं। मान्यता है कि जो भक्त निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और वह पापों से मुक्त हो जाता है।
निर्जला एकादशी मनाने की विधि...
निर्जला एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। इस दिन सूर्यास्त से पहले भोजन ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्ते, फल और फूल अर्पित करें। पूरे दिन निर्जल उपवास करें और भगवान विष्णु का नाम जपें। द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद पारण करें।
निर्जला एकादशी का व्रत कठिन अवश्य है, लेकिन इसके कई शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ हैं। यदि आप इस व्रत को रखना चाहते हैं, तो पहले अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।