निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में सबसे कठोर और पवित्र व्रतों में से एक है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस व्रत की यह खासियत है कि इसमें व्रती पूरे दिन बिना पानी पिए व्रत करता है।
व्रत की महिमा:निर्जला एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह पापों से मुक्ति दिलाने और भगवान शिव की कृपा पाने का अवसर प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
व्रत की कथा:निर्जला एकादशी की कथा भगवान विष्णु और राजा हरीश्चंद्र से जुड़ी है। राजा हरीश्चंद्र ने सत्य और धर्म की रक्षा के लिए अपने राज्य, परिवार और स्वयं को भी त्याग दिया था। उनकी कठिन परीक्षाओं के दौरान, भगवान विष्णु ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। व्रत के बाद, राजा हरीश्चंद्र को उनकी सभी आपदाओं से मुक्ति मिल गई और उन्हें अपने राज्य और परिवार को वापस मिल गया।
व्रत के नियम:निर्जला एकादशी व्रत करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना होता है:
निर्जला एकादशी व्रत को कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है:
निर्जला एकादशी व्रत के बाद, व्रती को द्वादशी तिथि की शाम को व्रत तोड़ना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। व्रत तोड़ने के लिए सबसे पहले फलाहार करना चाहिए और फिर धीरे-धीरे सामान्य भोजन करना शुरू करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत एक पवित्र और कठोर व्रत है, लेकिन इसके लाभ अनंत हैं। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति, भगवान शिव की कृपा और स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
"निर्जला एकादशी का व्रत करें, पापों से मुक्त हों और भगवान शिव का आशीर्वाद पाएं!"