निर्जला एकादशी व्रत




नमस्कार दोस्तों, आज हम बात करेंगे एक ऐसे व्रत के बारे में जो सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं निर्जला एकादशी व्रत की। आइए जानते हैं कि निर्जला एकादशी कब और क्यों मनाई जाती है।
निर्जला एकादशी व्रत हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। निर्जला एकादशी को भगवान विष्णु की निद्रा भंग करने वाले व्रत के रूप में भी जाना जाता है।
इस दिन भक्त निर्जल व्रत रखते हैं, यानी पूरे दिन कुछ भी नहीं खाते या पीते हैं। यही कारण है कि इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा बहुत ही रोचक है। एक बार भगवान विष्णु योग निद्रा में चले गए। माता लक्ष्मी ने उन्हें जगाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाईं। तब भगवान शिव ने माता लक्ष्मी को एक उपाय बताया। उन्होंने कहा कि अगर भगवान विष्णु को जगाना है तो निर्जला एकादशी का व्रत रखना होगा।
माता लक्ष्मी ने भगवान शिव की बात मानकर निर्जला एकादशी का व्रत रखा। उनके व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की निद्रा भंग हुई। भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें वरदान दिया कि जो भी भक्त निर्जला एकादशी का व्रत रखेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
निर्जला एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है। इस व्रत को रखने से कई प्रकार के लाभ मिलते हैं। इस व्रत को रखने से पापों का नाश होता है, मन की शांति मिलती है, भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
निर्जला एकादशी का व्रत कैसे रखा जाता है, इस बारे में विस्तार से जानने के लिए आप हमारे अन्य लेखों को पढ़ सकते हैं। लेकिन मैं आपको एक बात बता दूं कि निर्जला एकादशी का व्रत बहुत ही कठिन व्रत होता है। इसलिए, इस व्रत को रखने से पहले आपको अपने स्वास्थ्य की जांच करवानी चाहिए।