निर्जला एकादशी 2024: व्रत, पूजा विधि और महत्व




नमस्कार मित्रो, निर्जला एकादशी हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। इस साल 2024 में, निर्जला एकादशी 31 मई को पड़ रही है। यह एक बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन व्रती बिना पानी पिए रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। außerdem gilt diese Fastenzeit als besonders günstig für die Heilung von Krankheiten und die Erfüllung von Wünschen.
व्रत विधि
निर्जला एकादशी के व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की शाम से ही हो जाती है। इस दिन व्रती सात्विक भोजन करते हैं और सूर्यास्त से पहले भोजन करना बंद कर देते हैं। एकादशी के दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। पूजा के बाद व्रती पूरे दिन बिना पानी पिए रहते हैं। रात में व्रती जागरण करते हैं और भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करते हैं। द्वादशी तिथि के दिन व्रती स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। इसके बाद व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं।
पूजा विधि
निर्जला एकादशी की पूजा विधि बहुत ही सरल है। इस दिन व्रती को भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर पूजा करनी चाहिए। पूजा में फूल, फल, तुलसी के पत्ते, घी का दीपक और धूप अर्पित की जाती है। भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग भी लगाया जाता है। पूजा के दौरान व्रती भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करते हैं और आरती गाते हैं।
निर्जला एकादशी के लाभ
निर्जला एकादशी के व्रत को करने से कई लाभ मिलते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है, मोक्ष की प्राप्ति होती है, बीमारियों से राहत मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा, इस व्रत को करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है और जीवन में सफलता मिलती है।
निष्कर्ष
निर्जला एकादशी एक बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण व्रत है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं, इसलिए सभी भक्तों को इस व्रत को करने का प्रयास करना चाहिए। इस व्रत को करते समय व्रती को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत करना चाहिए। तभी इस व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है।