प्राचीन भारत की शिक्षा की धरोहर में नालंदा विश्वविद्यालय का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। बिहार के नालंदा जिले में स्थित यह विश्वविद्यालय प्राचीन काल में ज्ञान और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र था।
नालंदा की स्थापना गुप्त काल में हुई थी और माना जाता है कि यह 5वीं शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। इस विश्वविद्यालय में भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी छात्र ज्ञान की प्राप्ति के लिए आते थे।
नालंदा में विभिन्न विषयों का अध्ययन कराया जाता था, जिनमें बौद्ध दर्शन, धर्म, भाषा, साहित्य, कला और विज्ञान शामिल थे। विश्वविद्यालय का विशाल परिसर नौ मंजिला भवनों, दस मंदिरों और कई पुस्तकालयों से सुसज्जित था।
नालंदा के प्रसिद्ध छात्रों में भिक्षु शीलभद्र, नालंदा के तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रसिद्ध दार्शनिक ध्यान भिक्षु, विख्यात चीनी यात्री जुआनज़ैंग और भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट शामिल थे।
12वीं शताब्दी ईस्वी में तुर्क आक्रमणों के कारण नालंदा विश्वविद्यालय नष्ट हो गया। हालांकि, इसके भग्नावशेष आज भी अतीत की महिमा की कहानी कहता है।
नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह भारतीय शिक्षा प्रणाली के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। यह एक ऐसा स्थान है जहां ज्ञान की ज्योति सदियों से प्रज्वलित हुई, और जहां से दुनिया को शिक्षा का प्रकाश मिला।
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर आज भी हमारे लिए अतीत से एक सबक लेकर आते हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि ज्ञान और शिक्षा की शक्ति किसी भी राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।
आज, नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। लोग दूर-दूर से इस प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेषों को देखने और उसके गौरवशाली अतीत का अनुभव करने के लिए आते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय न केवल भारत के बल्कि दुनिया के लिए भी एक गौरवशाली निधि है। यह ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता का एक केंद्र था, जिसने सदियों से दुनिया को शिक्षा और प्रेरणा दी है।