नवीं-उल-हक, एक नाम जो साहित्यिक दुनिया में एक दिग्गज के रूप में गूँजता है। उनकी विशिष्ट लेखन शैली और विचारों की गहराई ने उन्हें उर्दू साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से एक बना दिया है।
यहाँ उनकी साहित्यिक यात्रा की एक झलक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षानवीं का जन्म 1924 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुआ था। एक साहित्यिक माहौल में पले-बढ़े, उनकी लेखन में रुचि कम उम्र में ही विकसित हो गई। उन्होंने उर्दू और अरबी में औपचारिक रूप से शिक्षा प्राप्त की, जो बाद में उनके लेखन का आधार बनने वाली थी।
साहित्यिक योगदाननवीं ने उपन्यास, कहानियाँ, निबंध और कविताएँ सहित साहित्य की विभिन्न विधाओं में योगदान दिया है। उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास, "आंगन", भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सांप्रदायिक दंगों की कहानी कहता है। यह उपन्यास साहित्यकारों और पाठकों के बीच समान रूप से प्रशंसित है।
उनकी कहानियाँ भी समान रूप से शक्तिशाली हैं, जो मानवीय भावनाओं और समाज की जटिलताओं की खोज करती हैं। उनके निबंध भारतीय मुसलमानों की स्थिति, सांप्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक विरासत जैसे विषयों पर उनके गहन विचार प्रस्तुत करते हैं।
शैली और विचारनवीं की लेखन शैली को इसकी सादगी और स्पष्टता के लिए जाना जाता है। वह अपनी बात तीखे ढंग से और प्रभावी ढंग से कहते हैं, बिना किसी अनावश्यक अलंकरण के। उनके विचार प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी हैं। वह भारतीय समाज में सांप्रदायिकता और विभाजन की कट्टर आलोचक हैं, और उनका मानना है कि सहिष्णुता, करुणा और समझ ही राष्ट्र की प्रगति का मार्ग है।
सम्मान और पुरस्कारनवीं को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म विभूषण और साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन शामिल हैं। उनकी रचनाएँ दुनिया भर में कई भाषाओं में अनुवादित की गई हैं, और उन्हें भारतीय साहित्य के वैश्विक राजदूत के रूप में माना जाता है।
विरासतनवीं का भारतीय साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनके लेखन ने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया है, सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है, और पाठकों को मानवीय स्थिति की गहरी समझ प्रदान की है। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लेखकों और पाठकों को प्रेरित करती रहेगी।
नवीं-उल-हक केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी भी थे। उन्होंने भारत में धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव के महत्व पर जोर दिया, जो आज भी प्रासंगिक है। उनके लेखन हमें याद दिलाते हैं कि हमारी विविधता हमारी ताकत है, और हमें मानवीय भावना की सर्वोच्चता पर विश्वास करना चाहिए।