ओडिशा में बीजू जनता दल, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच पिछले कुछ हफ्तों से जारी हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार में अब सन्नाटा पसर चुका है। 23 अप्रैल को मतदान के बाद से, राज्य के राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं और अटकलों का दौर तेज हो गया है। तीनों प्रमुख दल राज्य की 146 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत हासिल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
मतगणना 23 मई को होगी और उस दिन ही सभी को पता चल जाएगा कि ओडिशा का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। लेकिन अभी से राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बीजू जनता दल (बीजेडी) इस चुनाव में सबसे मजबूत स्थिति में है। बीजेडी कांग्रेस और बीजेपी दोनों के सामने एक बड़े खिलाड़ी की तरह खड़ी है।
बीजेडी पिछले 19 साल से ओडिशा पर राज कर रही है और इसका नेतृत्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक कर रहे हैं। पटनायक एक करिश्माई नेता हैं और उन्हें ओडिशा में "जनता के नेता" के रूप में जाना जाता है। वह राज्य में बेहद लोकप्रिय हैं और लोग उन्हें "नवीन बाबू" के नाम से जानते हैं।
बीजेडी को इस चुनाव में कई कारकों का फायदा हुआ है। सबसे पहले, पार्टी के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है। यह राज्य के हर गांव और शहर में मौजूद है। इसका मतलब है कि बीजेडी चुनाव अभियान के दौरान जमीनी स्तर पर मतदाताओं तक पहुंचने में सक्षम था।
दूसरा, बीजेडी के पास नवीन पटनायक के रूप में एक लोकप्रिय चेहरा है। पटनायक राज्य के सबसे अनुभवी और सफल मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। वह ओडिशा के विकास और प्रगति के लिए अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
तीसरा, बीजेडी ने पिछले कुछ वर्षों में कई लोकप्रिय योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं ने राज्य के गरीबों और वंचितों को लाभ पहुंचाया है। इससे सरकार की छवि सुधरी है और मतदाताओं के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ी है।
हालांकि, बीजेडी को इस चुनाव में कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार का आरोप है। बीजेडी सरकार पर कई बार भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है। इससे पार्टी की छवि खराब हुई है और इससे कुछ मतदाता दूर हो सकते हैं।
दूसरी चुनौती बीजेपी की बढ़ती ताकत है। बीजेपी पिछले कुछ वर्षों में ओडिशा में तेजी से बढ़ रही है। पार्टी को इस चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे का भी फायदा मिल रहा है। मोदी ओडिशा में बेहद लोकप्रिय हैं और बीजेपी को उम्मीद है कि इससे पार्टी को राज्य में अपने पैर जमाने में मदद मिलेगी।
कांग्रेस भी इस चुनाव में जीत के लिए पूरी कोशिश कर रही है। पार्टी पिछले 19 साल से सत्ता से बाहर है और वह वोटरों के बीच अपनी खोई हुई जमीन फिर से पाने के लिए बेताब है। कांग्रेस ने इस चुनाव में कई वादे किए हैं और वह लोगों को अच्छे दिन लाने का वादा कर रही है।
हालांकि, कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व की कमी है। पार्टी के पास एक मजबूत नेता की कमी है जो मतदाताओं को प्रेरित कर सके और उन्हें वोट देने के लिए प्रोत्साहित कर सके।
दूसरी चुनौती कांग्रेस की विभाजित छवि है। पार्टी कई गुटों में बंटी हुई है और यह एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ पा रही है। इससे पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा है।
तीसरी चुनौती भ्रष्टाचार का आरोप है। कांग्रेस पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है। इससे पार्टी की छवि खराब हुई है और इससे कुछ मतदाता दूर हो सकते हैं।
कुल मिलाकर, ओडिशा का विधानसभा चुनाव दिलचस्प है। बीजेडी सबसे मजबूत स्थिति में है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी भी जीत के लिए पूरी कोशिश कर रही हैं। मतदाता 23 मई को फैसला करेंगे कि ओडिशा का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।