पोंगल त्योहार की शुरुआत भोगी पोंगल से होती है। इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं और पुराने और बेकार सामान को जला देते हैं। रात में लोग अपने घरों के सामने अलाव जलाते हैं और उसके चारों ओर बैठकर भजन- कीर्तन करते हैं।
दूसरे दिन को सूर्य पोंगल के रूप में जाना जाता है। इस दिन किसान भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और उनकी पूजा करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है और दिन बड़े होने लगते हैं। इस दिन लोग अपने घरों के सामने रंगोली बनाते हैं और पोंगल बनाते हैं। पोंगल एक मीठा खीर जैसा व्यंजन है जो चावल, दूध और गुड़ से बनाया जाता है। भगवान सूर्य को पोंगल अर्पित करने के बाद इसे परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खाया जाता है।
तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने मवेशियों, विशेष रूप से गायों की पूजा करते हैं। गायों को नहलाया जाता है, सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। इस दिन किसान अपने खेतों में भी जाते हैं और फसलों की पूजा करते हैं।
चौथे और अंतिम दिन को कानूम पोंगल के रूप में जाना जाता है। इस दिन लोग अपनी बहनों के घर जाते हैं और उन्हें उपहार देते हैं। बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं और मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं।
पोंगल त्योहार न केवल किसानों के लिए बल्कि पूरे तमिलनाडु के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह एक ऐसा त्योहार है जो फसलों, सूर्य और मवेशियों का सम्मान करता है और किसानों को उनकी मेहनत के लिए धन्यवाद देता है।