प्रदीप शर्मा




हाल ही में संसद में, प्रधान मंत्री मोदी जी ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि "लोकतंत्र में तर्क होना चाहिए, बहस नहीं।" यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है।

लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार होता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में, अलग-अलग विचारों और विचारधाराओं के लिए जगह होती है। लोगों को अपनी राय स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए, और बहस विचारों के आदान-प्रदान की एक स्वस्थ प्रक्रिया होनी चाहिए।

हालांकि, हाल के वर्षों में, हमने देखा है कि बहस अक्सर विवाद और घृणा में बदल गई है। लोग अपने विचारों को लेकर अधिक ध्रुवीकृत होते जा रहे हैं और असहमति के लिए बहुत कम जगह है।

यह प्रवृत्ति चिंता की बात है। यह हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा है। जब हम तर्क के बजाय बहस में शामिल होते हैं, तो हम वास्तविक संवाद करने में असमर्थ हो जाते हैं। हम एक-दूसरे की बात सुनना बंद कर देते हैं और बस अपनी आवाज़ दूसरों से ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं।

प्रधान मंत्री मोदी जी का कथन हमें इस ख़तरनाक प्रवृत्ति से बचने की याद दिलाता है। हमें तर्क और बहस के बीच अंतर याद रखना चाहिए। तर्क सम्मानजनक और रचनात्मक है, जबकि बहस विनाशकारी और विभाजनकारी है।

एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए तर्क आवश्यक है। यह विचारों और विचारधाराओं के आदान-प्रदान की अनुमति देता है, जो नए विचारों और समाधानों की ओर जाता है। बहस, दूसरी ओर, प्रगति में बाधा है। यह हमें विभाजित करता है और हमें वास्तविक मुद्दों पर काम करने से रोकता है।

आइए हम प्रधान मंत्री मोदी जी के शब्दों को याद रखें और तर्क के मार्ग पर चलते रहें।