प्रेम की मधुर धुन को साकार करने वाले: पलियाथ जयचंद्रन
पलियाथ जयचंद्रन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने मधुर स्वर से संगीत की दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल किया। उनका जन्म 3 मार्च 1944 को केरल के एर्नाकुलम जिले के रविपुरम में हुआ था। बचपन से ही संगीत के प्रति उनका गहरा लगाव था और वे स्कूल के हर कार्यक्रम में भाग लेते थे।
जयचंद्रन ने 10वीं कक्षा में ही अपने गायन करियर की शुरुआत की, जब उन्हें एक स्थानीय ऑर्केस्ट्रा में गाने का मौका मिला। उनकी अद्भुत आवाज ने सभी का ध्यान खींचा और जल्द ही उन्हें फिल्मों में गाने के ऑफर मिलने लगे। 1965 में, उन्हें फिल्म "ओमनकुट्टी" में पहला ब्रेक मिला और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अपने करियर के दौरान, जयचंद्रन ने कई प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें जी. देवराजन, एम.एस. बाबुराज, वी. दक्षिणमूर्ति, के. राघवन, एम.के. अर्जुनन, एम.एस. विश्वनाथन, इलैयाराजा, कोटी, श्याम, ए.आर. रहमान, एम.एम. कीरावानी, विद्यासागर और एम. जयचंद्रन शामिल हैं। उन्होंने मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिंदी सहित कई भाषाओं में 15,000 से अधिक गाने रिकॉर्ड किए।
जयचंद्रन के गाने उनके भावुक और मधुर स्वर के लिए जाने जाते थे। उन्होंने प्रेम, हृदयविदारक और भक्ति गीतों में महारत हासिल की। उनके कुछ सबसे लोकप्रिय गीतों में "इंडीवरंगल," "एला मुलमथंडुम," "काश्तूरीमन," "थन्मथ्रा," "अम्मे देवी" और "श्री गुरुवायूरप्पन" शामिल हैं।
जयचंद्रन को उनके असाधारण योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्हें 1986 में फिल्म "वीरपुष्पंगल" के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्व गायक के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इसके अलावा, उन्होंने कई केरल राज्य फिल्म पुरस्कार और एशियानेट फिल्म पुरस्कार जीते।
संगीत के अलावा, जयचंद्रन एक प्रतिभाशाली अभिनेता भी थे। उन्होंने कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें "देवतान" (1973), "अंचु Sundarikal" (1978) और "संध्या" (1999) शामिल हैं। उनका अभिनय भी उतना ही सराहनीय था जितना उनका गायन।
9 जनवरी 2025 को, जयचंद्रन का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से संगीत जगत को अपूरणीय क्षति हुई। उन्हें उनके मधुर स्वर, उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति और संगीत के प्रति उनके जुनून के लिए हमेशा याद किया जाएगा।