पैरालंपिक और भारत
भारत की पैरालंपिक यात्रा
भारत की पैरालंपिक यात्रा एक प्रेरणादायक कहानी है जो देश के दृढ़ निश्चय और अदम्य भावना का प्रमाण है। रोम में 1960 के खेलों में अपनी शुरुआत के बाद से, भारतीय पैरालंपियंस ने विश्व मंच पर निरंतर सफलता हासिल की है। अपंगता से जूझने वाले व्यक्तियों को खेल में भाग लेने के समान अवसर प्रदान करने में सरकार और संगठनों के प्रयासों से इस सफलता को काफी बढ़ावा मिला है।
प्रारंभिक सफलता
- भारत ने 1960 में अपने पहले पैरालंपिक में एक छोटा सा दल भेजा था, लेकिन उन्होंने तुरंत पदकों की दौड़ में धूम मचा दी।
- कर्ण सिंह ने कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा और भारत को अपना पहला पैरालंपिक पदक दिलाया।
- मुरलीकांत पेटकर ने भाला फेंक में कांस्य पदक जीता, जो भारत का पहला एथलेटिक्स पैरालंपिक पदक था।
अविश्वसनीय उपलब्धि
- टोक्यो 2020 पैरालंपिक में, भारत ने 5 स्वर्ण, 8 रजत और 6 कांस्य पदक सहित कुल 19 पदक जीते।
- देवेन्द्र झाझरिया ने तीसरा स्वर्ण पदक जीतकर एक असाधारण उपलब्धि हासिल की, जो किसी भी भारतीय पैरालंपियन द्वारा सबसे अधिक स्वर्ण है।
- मनीष नरवाल ने 10 मीटर एयर पिस्टल SH1 में स्वर्ण और रजत पदक जीतकर निशानेबाजी में अपनी महारत साबित की।
प्रेरणादायक कहानियाँ
- अवनि लेखरा जैसे पैरालंपियंस ने अपनी असाधारण कहानियों से लाखों लोगों को प्रेरित किया है।
- लेखरा ने रियो 2016 और टोक्यो 2020 खेलों में निशानेबाजी में दो स्वर्ण पदक जीते, जबकि एक गंभीर कार दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के बाद।
- सुनील जोशी जैसे अन्य पैरालंपियंस ने भी अपनी अदम्य भावना से बाधाओं पर विजय प्राप्त की है।
भविष्य की ओर देखना
भारत की पैरालंपिक यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है। भारत सरकार ने पैरालंपिक खेलों को बढ़ावा देने और पैरालंपियंस को सहायता प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं। राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय जैसे संस्थान विशेष रूप से प्रशिक्षण और खेल विज्ञान के लिए समर्पित हैं। पैरालंपियंस के लिए पुरस्कार और प्रोत्साहन भी बढ़ाया गया है।
भारत के पास पैरालंपिक में और अधिक सफलता प्राप्त करने की क्षमता है। देश में प्रतिभा और क्षमता है, और सरकार और संगठनों की निरंतर सहायता से, भारतीय पैरालंपियंस भविष्य में और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं।