पराशुराम जयंती: अक्षय तृतीया पर कैसे पड़ा भगवान परशुराम का जन्म? जानिए पौराणिक कथा




पराशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। अक्षय तृतीया इस साल 22 अप्रैल 2023 को मनाई जाएगी। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म क्षत्रियों के अत्याचार को समाप्त करने के लिए हुआ था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका किसी नदी में स्नान करने गईं। वहां उन्होंने राजा कार्तवीर्य को नदी में नहाते देखा। राजा कार्तवीर्य बहुत ही सुंदर थे। रेणुका के मन में उनकी खूबसूरती को लेकर कामुक विचार आ गए। जब रेणुका वापस आश्रम लौटीं, तो जमदग्नि को उनकी आंखों में वासना दिखाई पड़ी।

जमदग्नि ने क्रोधित होकर अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे रेणुका का सिर काट दें। लेकिन सभी पुत्रों ने पिता की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। केवल परशुराम ने ही अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने अपनी माता का सिर काट दिया। जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वरदान दिया कि वे अमर होंगे और उनके पास अमोघ परशु होगा।

पराशुराम ने किया क्षत्रियों का संहार

पराशुराम ने क्षत्रियों के अत्याचारों से तंग आकर 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था। उन्होंने पृथ्वी पर से 21 बार क्षत्रियों का नाश किया। आखिरी बार जब परशुराम ने पृथ्वी पर से क्षत्रियों का नाश किया, तब महाराज राम ने उनका विरोध किया। राम और परशुराम के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में, राम ने परशुराम को हरा दिया और उन्हें संन्यास लेने को कहा।

पराशुराम की उपासना कैसे करें?

पराशुराम की उपासना करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन सर्वोत्तम है। इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। साथ ही, परशुराम पंचायतन की पूजा करनी चाहिए। पूजा में परशुराम की मूर्ति या तस्वीर, शिवलिंग, विष्णु मूर्ति, माता पार्वती की मूर्ति और माता लक्ष्मी की मूर्ति शामिल होनी चाहिए।

पराशुराम जयंती का महत्व

पराशुराम जयंती हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। साथ ही, हमें अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए, भले ही वह कितना भी कठिन क्यों न हो।

इस अक्षय तृतीया पर, आइए हम भगवान परशुराम की पूजा करके उनके आदर्शों का सम्मान करें।