शहर के बीचों-बीच उस अंधेरे मोड़ के पास जहां शहर की रफ़्तार मानो थम सी जाती है, वहीं एक छोटे से घर में रहती है पालकी शर्मा।
पालकी कभी ज़्यादा बात नहीं करती, लेकिन उसकी आँखों से एक ऐसा दर्द छलकता है जिसे समझना मुश्किल नहीं होता। जब भी मैं उससे बात करने की कोशिश करता हूँ, तो वो बस एक फीकी मुस्कान भर देती है।
एक दिन, मुझे पता चला कि पालकी एक विधवा है। उसके पति की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गई थी, जब वो अभी बहुत छोटी थी। तब से वो अकेली ही जीवन की गाड़ी खींच रही है।
मैंने उससे उसके पति के बारे में पूछा। उसने बहुत ही धीमी आवाज़ में कहा, "वो बहुत अच्छा इंसान था। हम दोनों बहुत प्यार करते थे।" उसकी आँखों में एक गहरी उदासी थी, मानो वो समय के उस पन्ने को दोबारा जी रही हो।
पालकी ने मुझे बताया कि कैसे उसके पति ने उसके लिए एक छोटा सा घर बनाया था। उस घर में ही उन्होंने कुछ खुशनुमा साल बिताए थे। लेकिन उसके पति के जाने के बाद, वो घर उस खालीपन का साक्षी बन गया जिससे वो हर रोज़ जूझती आ रही है।
मैं पालकी की बातें सुनकर बहुत दुखी हो गया। मैं सोचता हूँ कि वो कितनी अकेली होगी। हर रोज़ उसके पति की यादों के साथ जीना कितना मुश्किल होगा। लेकिन उसमें एक अदम्य उम्मीद की किरण भी दिखाई देती है। वो अपने पति की यादों को संजोए हुए है, उन्हीं यादों के सहारे जी रही है।
पालकी शर्मा की कहानी हमें जीवन की नश्वरता और प्यार की शक्ति के बारे में याद दिलाती है। यह हमें बताती है कि भले ही समय आगे बढ़ता रहे, लेकिन यादें हमेशा हमारे साथ रहती हैं।
आप जब भी उस अंधेरे मोड़ से गुज़रें, तो पालकी शर्मा के घर के पास एक पल के लिए रुकें और उसकी कहानी याद करें। उसकी कहानी जीवन के संघर्षों और प्रेम की ताकत का एक प्रमाण है।