हिंदी सिनेमा के पर्दे पर रोमांस का पर्याय रहे फ़िरोज़ खान ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व और बेबाक अंदाज़ से दर्शकों को हमेशा ही मोहित किया। 70 के दशक के इस मेगास्टार ने भले ही हमें अब छोड़ दिया हो, लेकिन उनकी फिल्में और उनकी कहानियां आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा हैं।
फ़िरोज़ खान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को बैंगलोर में हुआ था। उनकी मां एक अफगानी थीं और पिता एक पठान। अपने भाई संजय खान के साथ फ़िरोज़ ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत बतौर सहायक निर्देशक की। लेकिन जल्द ही उनके भीतर का अभिनेता जाग उठा।
1960 में फ़िल्म "दाग़" से उन्होंने बतौर हीरो अपनी पहली धमाकेदार एंट्री की। उस ज़माने में जब हीरो अक्सर नरम और भावुक होते थे, फ़िरोज़ खान अपनी दमदार छवि और एक्शन सीक्वेंस से अलग दिखाई दिए। उन्होंने अपने ही अंदाज़ में रोमांस को परिभाषित किया।
फ़िरोज़ खान ने अपने करियर में "आदमी और इंसान," "मेला," "जंजीर" जैसी कई यादगार फिल्में दीं। उनकी फ़िल्म "कुरबानी" का गाना "लाइफ़ इज़ ए गेम" आज भी लोगों की जुबान पर है।
फ़िरोज़ खान अपनी निजी ज़िंदगी में भी उतने ही बेबाक थे जितने परदे पर। उनकी शादी 1965 में सुंदरी सुंदरी से हुई थी, लेकिन कुछ सालों बाद ही उनका तलाक हो गया। बाद में उन्होंने 2002 में नताशा मदन से निकाह किया।
फ़िरोज़ खान को अपने दोस्तों और सहकर्मियों के बीच "फिरोज़ भाई" के नाम से जाना जाता था। वह अपनी मेज़बानी और अपने शानदार अंदाज़ के लिए मशहूर थे। उनके घर की पार्टियों में बॉलीवुड के बड़े-बड़े नाम अक्सर शिरकत करते थे।
27 अप्रैल, 2009 को 69 साल की उम्र में मुंबई में फ़िरोज़ खान का निधन हो गया। कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। लेकिन उनकी यादें और उनकी फ़िल्में आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में ताज़ा हैं।
फ़िरोज़ खान का सितारा भले ही आज हमारे बीच न हो, लेकिन उनका जादू अभी भी ज़िंदा है। उनकी फ़िल्में उनकी बेमिसाल शैली और उनके करिश्माई व्यक्तित्व की गवाही देती हैं। वह हमेशा बॉलीवुड के इतिहास में एक आइकन के रूप में याद किए जाएंगे।