भारतीय कुश्ती के इतिहास में बजरंग पूनिया एक ऐसे नाम हैं जिनकी गूंज पूरे विश्व में है। उनकी कुश्ती में निपुणता और जिजीविषा ने उन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में से एक बना दिया है।
हरियाणा के झज्जर जिले के एक छोटे से गांव खानपुर कलां में 12 फरवरी 1991 को जन्मे बजरंग पूनिया को बचपन से ही कुश्ती का शौक था। उनके पिता भी एक पहलवान थे, जिस कारण से बजरंग को कुश्ती का माहौल घर से ही मिला। 6 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता से कुश्ती सीखना शुरू कर दिया।
बजरंग पूनिया की सबसे बड़ी खासियत उनकी आक्रामक कुश्ती शैली है। वह हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करने की तलाश में रहते हैं और अपने तेज दांव-पेंच से उन्हें पछाड़ने में सक्षम हैं। उनके हस्ताक्षर चालों में से एक है 'डबल लेग टेकडाउन', जिसका उपयोग वह विरोधियों को जमीन पर गिराने और उन्हें वहीं पर रखने के लिए करते हैं।
बजरंग पूनिया न केवल एक महान पहलवान हैं, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्ति भी हैं। उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें कई बाधाओं को पार करने और सफलता की ऊंचाइयों को छूने में मदद की है। वह युवा पहलवानों के लिए एक आदर्श हैं जो दिखाता है कि कड़ी मेहनत और समर्पण से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
भारतीय खेलों में बजरंग पूनिया एक चमकते सितारे हैं। उनकी उपलब्धियों ने दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया है। वह एक ऐसा पहलवान है जिस पर हमें गर्व है और जो भविष्य में भी हमें कई और पदक दिलाएगा।