यूरो! एक ऐसा नाम जो मुंह में जैसे ही आता है, साथ में ही आती है एक समृद्धि और भव्यता की छवि। यूरोपीय संघ के देशों की मुद्रा के रूप में स्थापित, यूरो को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भंडार मुद्रा के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आज इस यूरो का वैल्यू भारतीय रुपये से भी कम हो गया है? जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा। एक यूरो आज लगभग 83 रुपये में मिल रहा है। तो आइए, हम देखते हैं कि आखिर इस मजबूत मुद्रा का मूल्य इतना कैसे नीचे आ गया।
यूरो की गिरती कीमत में सबसे बड़ा योगदान रूस-यूक्रेन युद्ध का रहा है। जब से युद्ध शुरू हुआ है, यूरोपीय संघ ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे रूसी तेल और गैस की आपूर्ति प्रभावित हुई है। इससे यूरोप में ऊर्जा की कमी हो गई है, जिससे मुद्रास्फीति की दर बढ़ी है और यूरो की कीमत में गिरावट आई है।
दूसरी प्रमुख वजह है अमेरिकी डॉलर की बढ़ती ताकत। फेडरल रिजर्व के द्वारा ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी से डॉलर की कीमत मजबूत हुई है। इससे निवेशक डॉलर की ओर आकर्षित हुए हैं, जिससे यूरो के मुकाबले डॉलर की मांग बढ़ी है और यूरो की कीमत में गिरावट आई है।
रूस-यूक्रेन युद्ध और ऊर्जा संकट के कारण यूरोपीय अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है। इससे यूरोपीय संघ के देशों में विकास दर धीमी हो गई है और निवेशकों का भरोसा कम हो गया है। इसने भी यूरो की कीमत में गिरावट में योगदान दिया है।
यूरो की गिरती कीमत भारत के लिए कुछ हद तक अच्छी खबर है। इससे भारतीयों के लिए यूरोप की यात्रा या वहां से सामान आयात करना सस्ता हो जाएगा। इससे भारत को अपने निर्यात को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि यूरोपीय देशों के लिए भारतीय सामान सस्ता हो जाएगा।
यह कहना मुश्किल है कि यूरो की कीमत में दोबारा तेजी आएगी या नहीं। यह रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक आर्थिक स्थिति और अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन जैसे कई कारकों पर निर्भर करेगा। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यूरो की कीमत में निकट भविष्य में तेजी आने की संभावना कम है।
वैसे, आपको जानकरहैरानी होगी कि एक समय था जब एक यूरो 100 रुपये से भी महंगा था। साल 2008 में एक यूरो की कीमत 103.23 रुपये थी। लेकिन, उसके बाद से यूरो की कीमत लगातार गिरती गई और अब यह 83 रुपये पर आ गई है।
यूरो की गिरती कीमत का कई तरह के असर हो सकते हैं।