बंदी छोर दिवसः प्रकाश का उत्सव




मानव इतिहास में कई ऐसे अंधेरे अध्याय हैं जहां अत्याचारियों ने मानवता पर अपना अत्याचार थोपा। ऐसे ही एक अत्याचारी सम्राट थे जहांगीर। उनके शासनकाल में उन्होंने कई निर्दोष लोगों को झूठे आरोपों में कैद कर लिया। ये निर्दोष लोग लंबे समय से जेल में सड़ रहे थे और हर दिन उनकी आशाएं कम होती जा रही थीं।

लेकिन, भाग्य के पास उनके लिए कुछ और ही था। एक दिन, सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह जी, जेल में आए। वे कैदियों से मिले और उनके दुख-दर्द को समझा। गुरु जी ने उनसे कहा, "चिंता मत करो, मैं तुम्हें आजाद कराऊंगा।"

गुरु जी ने जेल के पहरेदारों को समझाया कि ये लोग निर्दोष हैं और उन्हें रिहा किया जाना चाहिए। लेकिन पहरेदार नहीं माने। तब गुरु जी ने कहा, "अगर तुम ये लोग रिहा नहीं करते हो, तो मैं भी जेल में रहूंगा।"

पहरेदारों को गुरु जी की बातों से प्रभावित होना पड़ा। उन्होंने कैदियों को रिहा कर दिया और गुरु जी को भी रिहा कर दिया। ये दिन कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था। तभी से इस दिन को "बंदी छोर दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

बंदी छोर दिवस प्रकाश का उत्सव है। यह उस दिन की याद दिलाता है जब अंधकार पर प्रकाश की जीत हुई। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि भले ही अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, प्रकाश हमेशा उसे दूर कर देगा।

इस दिन, लोग गुरुद्वारों में जाते हैं और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। वे गुरु हरगोबिंद सिंह जी को याद करते हैं और उनके बलिदान को श्रद्धांजलि देते हैं। वे दीये जलाते हैं और आतिशबाजी करते हैं, जो प्रकाश और खुशी का प्रतीक है।

बंदी छोर दिवस एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें अत्याचार और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि भले ही अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, प्रकाश हमेशा उसे दूर कर देगा।

इस बंदी छोर दिवस पर, आइए हम अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प लें। आइए हम प्रकाश के दूत बनें और दुनिया को उज्जवल बनाएं।

जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल!